तो चलिए बिना किसी देरी के शुरू करते हैं
प्रभु जाति की अवधारणा , परिभाषा, भूमिका और विशेषताएं
प्रभु जाति क्या है |
प्रभु जाति की अवधारणा को डॉ श्रीनिवास ने सन 1959 में मैसूर के एक छोटे से गांव का अध्ययन करने के बाद विकसित किया। प्रभु जाति को प्रबल जाति, प्रभुता सम्पन्न जाति, प्रभावी जाति या संरक्षित जाति के नाम से भी जाना जाता है। यह सभी शब्द एक ग्रामीण समुदाय के अंतर्गत एक ऐसे वर्ग या जाति समूह का बोध करते हैं जिनके द्वारा गांव पर ग्रामीणों के जीवन, सम्बंध और एकता को काफी हद तक प्रभावित किया जाता है।
प्रभु जाति किसे कहते हैं |what is Dominant Caste
प्रभु जाति उस जाति ,समुदाय या समूह को कहा जाता है जिनके सदस्यों की संख्या इतनी अधिक हो कि वह गांव के अन्य जातियों और समूहों पर अपना प्रभुत्व रख सकते हों और एक प्रभावशाली आर्थिक और राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य कर सकते हों। ऐसे जाति समूह जिनका स्थान पूरी जाति व्यवस्था में मध्यम या उच्च होता है अगर उनकी जनसंख्या बाक़ी जाति समूहों से ज्यादा होती है तो वह आसानी से एक प्रबल अथवा प्रभु जाति में परिवर्तित हो जाता है। यह जाति कोई भी वह जाति हो सकती है जो अछूत ना हो।
प्रभु जाति की परिभाषा
डॉ श्रीनिवास ने प्रभु जाति की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि -
" एक जाति को प्रभु जाति तब कहा जाता है जब वह संख्यात्मक आधार पर किसी गांव अथवा स्थानीय क्षेत्र में शक्तिशाली हो तथा आर्थिक और राजनीतिक रूप से अपने प्रभाव का प्रबल रूप से प्रयोग करती हो । यह आवश्यक नही है कि परंपरागत जातीय संस्तरण में वह सर्वोच्च जाति के रूप में ही हो"
उदाहरण के तौर पर :- अगर किसी गांव में ब्राह्मणों की संख्या ज्यादा है तो स्वाभाविक रूप से ब्राह्मणों का उस गांव के आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में प्रभाव ज्यादा रहता है। कोई भी निर्णय लेना हो या कोई बड़ा कार्य होना हो सभी कार्यों में उस जाति का पूरा प्रभाव रहता है। ब्राह्मण की जगह इसमे कोई अन्य जाति भी हो सकती है जो जातीय स्तर में निम्न न हो। इसी को प्रभु जाति कहा जाता है।
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प्रभु जाति की विशेषताएं
प्रभु जाति की अवधारणा को समझने के लिए इस बात पर भी गौर किया जाना आवश्यक है कि क्या कारण है कि कोई जाति किसी क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित कर पाती है। इसका क्या आधार है। इसके अलावा ऐसी कौन से विशेषतायें है जिनके होने से हम किसी जाति को प्रबल जाति कहते है।
प्रभु जाति की विशेषताएं
- क्षेत्र या गांव में कृषि-भूमि के एक बड़े भाग पर उनका अधिकार होना।
- जाति में सदस्यों की संख्या अन्य जातियों की तुलना में अधिक होना।
- वह जाति जो क्षेत्र व गांव में आर्थिक रूप से मजबूत और प्रभावशाली हो
- स्थानीय जाति-संस्तरण के आधार पर उस जाति का तुलनात्मक रूप से ऊंचे स्थान पर होना।
भारतीय राजनीति में प्रभु जाति की भूमिका
भारत मे राजनीति को वर्तमान में भी प्रभु जाति काफी हद तक प्रभावित करती है। भारत मे वर्तमान में भी कई राजनीति दल हैं जो जाति की राजनीति करते हैं। आजादी के बाद जब भारत मे सभी जाति धर्म और समुदाय के लोगों को समान अधिकार दिए गए तो यहां की चुनाव पर आधारित राजनीति में जाति एक प्रमुख आधार बन गयी है।
जब कोई जाति एक प्रभु जाति का रूप ले लेती है तो उसका सीधा असर गांव अथवा क्षेत्र के दूसरे जाति समूहों पर पड़ता है। वह किसी दूसरे जाति समूह से जुड़े फैसले कर सकती है। यहां तक कि वह अन्य जातियों पर इतना प्रभाव डाल सकती है कि वह उनके कर्मों और व्यवहारों को भी प्रभावित कर सकती है।
इसी प्रकार यह भारतीय राजनीति को भी प्रभावित करती है जैसे :- पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत जातियॉं जनसंख्या के साथ ही आर्थिक, राजनीतिक शैक्षणिक क्षेत्रों में भी अधिक प्रभावशाली है। इसके कारण ही ग्राम प्रधान हो या सांसद, खण्ड और जिला स्तर पर सभी जगह आपको इन्ही जातियों के लोग देखने को मिलेंगे।
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