श्रृंगार रस - Shringar ras की परिभाषा, भेद व सरल उदाहरण

SUSHIL SHARMA
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Shringar ras ki paribhasha : नमस्कार दोस्तों हिंदी विज़न में आपका स्वागत है। आज हम 'श्रृंगार रस' के बारे में पढ़ेंगे और 'श्रृंगार रस की परिभाषा' और 'श्रृंगार रस के उदाहरण' के बारे में जानेंगे । जैसा कि आप जानते ही हैं कि किसी भी काव्य या रचना को पढ़कर या सुनकर हमारे मन मे जो भाव उत्पन्न होता है उसे रस कहा जाता है। रसों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्रृंगार रस को माना जाता है। आज हम श्रृंगार रस के बारे मे विस्तार से जानेंगे। 


Shringar ras ( श्रृंगार रस)

हिंदी साहित्य में में 9 प्रकार के रस होते हैं जिसमे से श्रृंगार रस भी एक महत्वपूर्ण रस है। श्रृंगार रस को सभी रसों में सबसे प्रभावशाली माना गया है क्योंकि इसका प्रभाव क्षेत्र बहुत ही व्यापक है। श्रृंगार रस का स्थायी भाव 'रति' या प्रेम होता है। यही प्रेम जब अनुभाव, विभाव व संचारी भाव के माध्यम से हमें रस के रूप में प्राप्त होता है तो उसे श्रृंगार रस कहते हैं। 

श्रृंगार रस को 'रसराज' अर्थात रसों का राजा भी कहा जाता है। भक्ति रस व वात्सल्य रस भी श्रृंगार रस के अंतर्गत ही आते हैं। हालांकि कई मतों के अनुसार इन्हें भिन्न रस बताया जाता है।  

आइये श्रृंगार रस के बारे में विस्तार से जानते हैं - 

श्रृंगार रस की परिभाषा (Shringar ras ki paribhasha)

श्रृंगार रस की परिभाषा (Shringar ras ki paribhasha)


परिभाषा :-  "श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति या प्रेम होता है। नायक नायिका के मन मे संस्कार रूप में उपस्थित प्रेम जब रस की अवस्था को प्राप्त कर आस्वादन के योग्य हो जाता है तो वह श्रृंगार रस कहलाता है।"


सरल शब्दों में कहें तो जिस काव्य को पढ़कर या सुनकर रति/प्रेम नामक भाव की अनुभूति होती हैं वहां पर श्रृंगार रस होता है। भक्ति रस हो या वात्सल्य रस, सभी प्रकार का प्रेम श्रृंगार रस के अंतर्गत ही आता है।

उदाहरण  -  महा मधुर रस प्रेम कौ प्रेमा। 
                पीवत ताहिं भूलि गये नेमा॥ 
                तैसी सखी रहै दिन-राती। 
               'हित ध्रुव' जुगल-नेह मदमाती॥

श्रृंगार रस के अवयव

स्थाई भाव            -   रति (प्रेम)
आलंबन (विभाव)   -  नायक-नायिका, (प्रेमी, प्रेम-पत्र)
उद्दीपन  (विभाव)   -  सुंदरता, प्राकृतिक दृश्य, वर्षा, वसंत,
                             संगीत, सुगंध, चाँदनी आदि
अनुभाव               -  अवलोकन, स्पर्श आदि
संचारी भाव          -   स्मृति, लज्जा, मोह, उत्कंठा, हर्ष, 
                             आवेग, रोमांच आदि

श्रृंगार रस के भेद (Shringar ras ke bhed)

श्रृंगार रस को उनकी प्रकृति के अनुसार चार भागों में विभाजित किया गया है। 
  1. संयोग श्रृंगार रस
  2. वियोग श्रृंगार (विप्रलम्भ श्रृंगार रस)
  3. वात्सल्य रस
  4. भक्ति रस

संयोग श्रृंगार रस

यहाँ पर नायक तथा नायिका के पारस्परिक मिलन तथा संयोग का वर्णन हो वहाँ पर संयोग श्रृंगार रस होता है। यहाँ पर संयोग का अर्थ 'सुख की प्राप्ति' से है।

उदाहरण  -  थके नयन रघुपति छबि देखें। 
                 पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें।।
                 अधिक सनेहँ देह भै भोरी।
                 सरद ससिहि जनु चितव चकोरी।।

वियोग श्रृंगार रस (विप्रलम्भ श्रृंगार रस)

एक दूसरे के प्रेम में अनुरक्त नायक एवं नायिका के मिलान के आभाव को वियोग श्रृंगार या विप्रलम्भ श्रृंगार रस कहा जाता है। 

उदाहरण - 

गोपी ग्वाल गाइ गो सुत सब,
अति ही दीन बिचारे। 
सूरदास प्रभु बिनु यौं देखियत,
चंद बिना ज्यौं तारे।।

भक्ति रस (Bhakti ras)

परिभाषा :- जब भक्ति रस में परमात्मा विषयक प्रेम विभाव अनुभवः व संचारी भाव से परिपुष्ट होकर रस निष्पत्ति करता है तो वहाँ पर भक्ति रस होता है। 

अर्थात जहाँ पर भक्त और भगवान का संयोग हो व भक्ति नामक भाव की उत्पत्ति हो वहाँ पर भक्ति रस होता है। 

उदाहरण -  अँसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम बेलि बोई
               मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई। 

वात्सल्य रस (Vatsalya ras)

परिभाषा - वात्सल्य रस में पुत्र बालक शिष्य अनुज आदि के प्रति स्नेह विभाव अनुभाव तथा संचारी भाव से पुष्ट होकर वात्सल्य रस की निष्पत्ति करता है। 

अर्थात जहाँ पर पिता , पुत्र, माता, भाई, बहन के मध्य स्नेह व प्रेम भाव की उत्पत्ति होती है, वहाँ पर वात्सल्य रस होता है। 

उदाहरण -   बाल सखा सुख निरखि जसोदा, 
                 पुनि पुनि नंद बुलावति।
                 अँचरा-तर लै ढाँकि सूर,
                 प्रभु कौ दूध पियावति ।।


आवश्यक जानकारी  :-  कई विद्वान 'भक्ति रस' व 'वात्सल्य रस' को अलग रस मानते हैं किंतु ऐसा नहीं है भक्ति रस और वात्सल्य रस भी श्रृंगार रस के अंतर्गत ही आते हैं। श्रृंगार का स्थायी भाव प्रेम होता है फिर वह चाहे नायक -नायिका का हो, पति पत्नी का हो, माता शिशु का हो या भक्त और भगवान का। श्रृंगार रस का क्षेत्र बहुत ही व्यापक होता है इसी कारण इसे रसराज भी कहा जाता है।


श्रृंगार रस के उदाहरण - Example of Shringar ras in hindi

श्रृंगार रस के उदाहरण (Shringar ras ke udaharan)


 उदाहरण - 1 

हरिजन जानि प्रीति अति बाढ़ी ।
सजल नयन पुलकाबलि ठाढ़ी ।।

 उदाहरण - 2 

बचन न आव नयन भरि बारी ।
अहह नाथ हौं निपट बिसारी ।।

 उदाहरण - 3 

महा मधुर रस प्रेम कौ प्रेमा। 
पीवत ताहिं भूलि गये नेमा॥ 
तैसी सखी रहै दिन-राती। 
हित ध्रुव' जुगल-नेह मदमाती॥

 उदाहरण - 4 

क्या पूजा, क्या अर्चन रे !
उस असीम का सुन्दर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे !
मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनंदन रे !
पदरज को धोने उमड़े आते लोचन जलकण रे !

 उदाहरण - 5 

थके नयन रघुपति छबि देखें। 
पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें।।
अधिक सनेहँ देह भै भोरी।
सरद ससिहि जनु चितव चकोरी।।

 उदाहरण - 6 

गोपी ग्वाल गाइ गो सुत सब,
अति ही दीन बिचारे। 
सूरदास प्रभु बिनु यौं देखियत,
चंद बिना ज्यौं तारे।।

 उदाहरण - 7 

लोचन मग रामहि उर आनी।
दीन्हे पलक कपाट सयानी।।
जब सिय सखिन्ह प्रेमबस जानी।
कहि न सकहिं कछु मन सकुचानी।।

 उदाहरण - 8 

महाप्रेम गति सब तें न्यारी।
पिय जानै, कै प्रान-पियारी॥ 
उरझे मन सुरझत नहिं केहू।
जिहि अंग ढरत होत सुख तेहू॥ 

श्रृंगार रस के उदाहरण - Easy example of shringar ras

श्रृंगार रस के उदाहरण (Shringar ras ke udaharan)



 उदाहरण - 9 

कौतुक प्रेम छिनहिं-छिन होई।
यह रस विरलो समुझै कोई॥ 
ज्यों-ज्यों रूपहिं देखत माई।
प्रेम-तृषा की ताप न जाई॥ 

 उदाहरण - 10 

मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो
बाल ग्वाल सब पीछे परिके बरबस मुख लपटाओ।

 उदाहरण - 11 

झूले पर उसे झूलाऊंगी दूलराकर लूंगी वदन चुम मेरी छाती से लिपटकर वह घाटी में लेगा सहज घूम।



आज आपने सीखा 

हां तो दोस्तों आशा करते हैं कि आपको हमारी आज की यह पोस्ट "Shringar ras" पसंद आई होगी। आज की इस पोस्ट में हमने जाना कि 'श्रृंगार रस की परिभाषा'  क्या होती है और  श्रृंगार रस के आसान उदाहरण । दोस्तों हमने इस पोस्ट में यही प्रयास किया है की आपको इससे जुड़ी सभी जानकारी सरल भाषा मे बता सकें। फिर भी अगर आपके मन मे कोई सवाल हो तो हमसे कमेंट में पूछ सकते हैं। 

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