Karak in hindi: नमस्कार ! Hindee Vision में आपका स्वागत है। जैसा कि टाइटल सही स्पष्ट हो जाता है कि आज हम बात करने वाले हैं "कारक" की और आज हम आपके इन सवालों के जवाब देंगे और आप जानेंगे कि 'कारक किसे कहते है' , karak ki paribhasha और karak kitne prakaar ke hote hai आदि। हिंदी व्याकरण में 8 कारक माने जाते हैं । आज हम कारक व उनके प्रकारों के बारे में विस्तार से जानेंगे और उनसे जुड़े महत्वपूर्ण उदाहरण भी प्रस्तुत करेंगे।
इस पोस्ट में हम आपको 'कारक व उसके भेद' से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी विस्तार से प्रदान करेंगे।
तो चलिए शुरू करते हैं -
कारक की परिभाषा भेद व उदाहरण - karak in hindi
आइए सबसे पहले कारक की परिभाषा के बारे में जानते हैं।
कारक की परिभाषा
परिभाषा :- "कारक वह तत्व होते हैं जो क्रिया की उत्पत्ति में सहायक होते हैं या किसी शब्द का क्रिया से संबंध बताते हैं।"
सरल शब्दों में कहें तो कारक की सहायता से हम किसी वाक्य में क्रिया का अन्य शब्दों से संबंध बताते है। इनके बिना किसी भी वाक्य में वास्तविक संबंध नही बता पाए।
जैसे :- क्रांतिकारियों ने हमारे देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करवाया।
यहां पर आजाद करवाया (क्रिया) से अन्य शब्दो क्रांतिकारियों, देश, अंग्रेजों और गुलामी से संबंध है। इसके लिए वाक्य में ने, को, की, से शब्दो का भी इस्तेमाल हुआ है। इन शब्दों को कारक-चिन्ह या परसर्ग कहते हैं। इन कारक-चिन्हों के बिना वाक्य का वास्तविक अर्थ निकालकर नही आता।
जैसे -
= क्रांतिकारियों ने हमारे देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करवाया।
= क्रांतिकारियों हमारे देश अंग्रेजों गुलामी आजाद करवाया।
यहां पर हमने दूसरे वाक्य में कारक चिन्हों (ने, को, की, से) को हटा दिया है। इससे पूरा वाक्य अर्थहीन हो जाता है।
कारक के प्रकार
हिंदी भाषा में कारकों की संख्या 8 मानी गयी है। इनमें प्रमुख कारक हैं -
- कर्ता कारक
- कर्म कारक
- करण कारक
- सम्प्रदान कारक
- अपादान कारक
- संबंध कारक
- अधिकरण कारक
- संबोधन कारक
1. कर्ता कारक
परिभाषा - " जो क्रिया का सम्पादन करे, 'कर्ता कारक' कहलाता है।"
सरल भाषा मे कहें तो कर्ता कारक वह होता है जो क्रिया अर्थात काम करता है। यानी कि कोई कार्य जिसके द्वारा किया जाता है वह कर्ता कारक कहलाता है। इसका विभक्ति चिन्ह 'ने' होता है।
जैसे - मोहन ने सारे आम खा लिए हैं।
यहां पर 'आम खाना' क्रिया है जिसका संपादक 'मोहन' है यानी कर्ता कारक 'मोहन' है।
कर्ता कारक का प्रयोग
कर्ता कारक का प्रयोग दो रूपों में किया जाता है -
- परसर्ग सहित कर्ता कारक
- परसर्ग रहित कर्ता कारक
परसर्ग सहित कर्ता कारक
■ इसमें भूतकाल की सकर्मक क्रिया में सदैव करता के साथ 'ने' परसर्ग लगाया जाता है।
जैसे - सीता ने फूल तोड़े।
मदन ने खाना खाया।
■ प्रेरणार्थक क्रियाओं के साथ भी 'ने' परसर्ग का इस्तेमाल किया जाता है।
जैसे - उसने मुझे सिखाया।
मैंने उसे सिखाया।
परसर्ग रहित कर्ता कारक
■ 'ने' विभक्ति का प्रयोग भूतकाल के लिए किया जाता है। वर्तमान काल और भविष्य काल के लिए 'ने' विभक्ति का प्रयोग नही किया जाता है।
जैसे - राम ने आम खाया था। (भूतकाल)
राम आम खा रहा है। (वर्तमान काल)
राम आम खायेगा । (भविष्य काल)
■ कर्ता कारक का परसर्ग शून्य और ने है जहां ने चिन्ह लुप्त रहता है वहां करता का शून्य चिन्ह माना जाता है।
जैसे - गाय दूध देती है।
यहाँ पर ने चिन्ह लुप्त है।
■ करता कारक में शून्य और 'ने' के अलावा 'को' और 'से / द्वारा' चिन्ह भी लगाया जाता है।
जैसे - उनको लिखना चाहिए
उनसे लिखा जाता है।
उनके द्वारा लिखा जाता है।
2. कर्म कारक
परिभाषा :- " जिस पर क्रिया का प्रभाव पड़े वह 'कर्म कारक' कहलाता है।"
जैसे - राम ने रावण को मार दिया।
यशोदा माँ ने श्री कृष्ण को माखन दिया।
इन दोनों वाक्यों में 'रावण' और 'श्री कृष्ण' कर्म हैं क्योंकि यह दोनों मार डालना और माखन देने की क्रिया से प्रभावित हो रहे हैं।
■ इसका विभक्ति चिन्ह 'को' होता है परंतु यह परसर्ग भी कई स्थानों पर नही लगता है।
जैसे - वह रोटी खाता है।
वह लूडो खेलता है।
इन दोनों वाक्यों में कारक चिन्ह 'को' लुप्त है। इसे शून्य चिन्ह भी कहते हैं।
■ कभी-कभी वाक्यों में दो-दो कर्म उपस्थित होते हैं जिनमें एक मुख्य कर्म और दूसरा गौड़ गर्म होता है। प्रायः वस्तुबोधक को मुख्य कर्म और प्रणिबोधक को गौड़ कर्म के रूप में माना जाता है।
जैसे - बच्चे ने पंछी को पानी पिलाया।
यहाँ पर पंछी गौड़ कर्म है और पानी मुख्य कर्म है।
कर्म कारक के उदाहरण
- राम ने रावण को मारा।
- रवि ने मोहन को अपने घर बुलाया।
- सीता पंछी को देखती है।
- राघव ने सीता को धन दिया।
- वह आम खाता है।
- बंदर नाच दिखाता है।
- राज ने मित्र को लस्सी पिलाई।
- मैन एक सपना देखा।
- बच्चे ने खिलौना खरीदा।
- रवि को बैल खरीदना पड़ेगा।
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3. करण कारक
परिभाषा - " वाक्य में जिस साधन या माध्यम से क्रिया की जाती है उसे ही 'करण कारक' कहते हैं।"
सरल शब्दों में कहें तो जिन वस्तुओं या साधनों की सहायता से कार्य किया जाता है उसे ही करण कारक कहते है। इसके कारक चिन्ह 'के', 'से', 'द्वारा' होते हैं।
जैसे - राधा कलम से लिखती है।
वज्र के प्रहार से हनुमानजी मूर्छित हो गए।
हमें आपके पत्र द्वारा यह सूचना मिली।
उपरोक्त वाक्यों में कलम, वज्र और पत्र करण कारक हैं क्योंकि इनकी सहायता से ही कार्य हो रहा है।
■ कई बार वाक्यों में करण कारक लुप्त होता है।
जैसे - उसने अपने हाथों अपने भविष्य खराब किया।
जो कमाएगा नहीं वह भूखों मर जाएगा।
करण कारक के उदाहरण
- राधा ने अपनी बहन से रुपए उधार लिए।
- राजू हल से खेत जोतता है।
- हम बस से विद्यालय जाते हैं।
- रवि ने अपने हाथों अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली।
- राघव ने पत्र के द्वारा मुझे बीमारी की सूचना दी।
4. सम्प्रदान कारक
परिभाषा - " कर्ता कारक जिस उद्देश्य के लिए या जिसके लिए क्रिया करता है वह सम्प्रदान कारक कहलाता है।"
सरल शब्दों में कहें तो कर्ता कोई भी कार्य जिसके लिए करता है वह सम्प्रदान कारक होता है। इसका कारक चिन्ह 'के लिए' होता है।
जैसे - पिताजी बच्चों के लिए मिठाई लाये।
इस वाक्य में पिताजी (कर्ता कारक) मिठाई बच्चों के लिए लेकर आये हैं। अतः यहां पर बच्चे सम्प्रदान कारक हैं।
■ सम्प्रदान कारक का चिन्ह 'को' भी होता है। लेकिन इसका प्रयोग कर्म कारक वाले को की तरह नही होता। यहां पर इसका इस्तेमाल 'के लिए के अर्थ में होता है।
जैसे - राजू ने भिखारी को रोटी दी।
पुजारी ने बच्चे को प्रसाद दिया।
यहाँ पर को का इस्तेमाल 'के लिए' के अर्थ में हुआ है। दरअसल जब कोई वस्तु हमेशा के लिए दी जाती है तब वहां पर 'को' का ही इस्तेमाल किया जाता है।
■ अभिवादन के लिए भी को का इस्तेमाल ले लिए के अर्थ में होता है।
जैसे -
माताजी को प्रणाम। (माताजी के लिए प्रणाम)
गुरुजी को प्रणाम । (गुरुजी के लिए प्रणाम)
5. अपादान कारक
परिभाषा - " वाक्य में जिस स्थान या वस्तु से किसी व्यक्ति या वस्तु के अलग होने या तुलना का बोध होता है वहां पर अपादान कारक होता है।"
जैसे - उसके हाथ से सेब गिर गया।
राजू लखनऊ से चल गया है।
यहाँ पर हाथ से सेब और लखनऊ से राजू के अलग होने का पता चल रहा है
इसका कारक चिन्ह 'से' होता है जो कि अलगाव के भाव के लिए प्रयोग किया जाता है।
सरल शब्दों में कहें तो अपादान कारक से अलग होने का पता चलता है इसके साथ ही प्रेम, लज्जा, भय, घृणा, ईर्ष्या आदि के भावों के लिए भी अपादान कारक का ही प्रयोग किया जाता है क्योंकि इन सभी कारणों से अलग होने की क्रिया का जुड़ाव जरूर होता है।
उदाहरण -◆ चूहा बिल्ली से बहुत डरता है।
◆ हमें दूसरों से घृणा नही करनी चाहिए।
◆ वह अभी तक दिल्ली से नही लौटा है।
◆ रवि मेहमानों के सामने लजाता है।
ध्यान दें - कारण कारक में भी कारक चिन्ह 'से' का इस्तेमाल किया जाता है लेकिव वहां ओर यह उस साधन को दर्शाता है जिससे कार्य किया जा रहा है। लेकिन अपादान कारक में 'से' का इस्तेमाल अलग होने के लिए किया जाता है।
6. संबंध कारक
परिभाषा :- "वाक्य के जिस पद से किसी वस्तु व्यक्ति या पदार्थ के साथ किसी दूसरे व्यक्ति वस्तु या पदार्थ का संबंध प्रकट हो वह संबंध कारक कहलाता है।"
इसके कारक चिन्ह 'का (का, की, के)' होते है।
जैसे - रवि की बहन दीपिका है।
यहाँ पर 'रवि' संबंध कारक है।
■ जब संज्ञा के स्थान पर सर्वनाम हो और उस पर संबंध कारक का प्रभाव पड़े तब 'ना, नी, ने' और 'रा, री, रे' हो जाता है।
जैसे - किसी को अपने बेटे की बुराई नही दिखती।
वह मेरा पुत्र है
संबंध कारक के उदाहरण
- हम रवि के घर जा रहे हैं।
- सीता की माँ बहुत अच्छा अचार बनाती हैं।
- राधिका की बहन डॉक्टर है।
- रामू की कार बहुत अच्छी है।
- शिवम की बाग में आम लगे हैं।
- शहर के किनारे बड़ी सी झील है।
7. अधिकरण कारक
परिभाषा :- " वाक्य में क्रिया का आधार, आश्रय, शर्त या समय ही अधिकरण कारक कहलाता है।"
सरल शब्दों में कहें तो आधार को ही अधिकरण कारक कहते है। यह आधार तीन प्रकार का होता है -
स्थानाधिकरण (स्थानवाची)
जब कोई भी स्थानवाची शब्द ही क्रिया का आधार हो तो वहाँ पर स्थानाधार अधिकरण होता है।
जैसे - चिड़िया डाल पर बैठी है।
पक्षी आकाश में उड़ते हैं।
दीपा दिल्ली में रहती है।
मछली जल में रहती है।
इन वाक्यों में स्थानवाची शब्द हैं जो कि क्रिया का आधार है।
कालाधिकरण (कालवाची)
जब कोई भी कालवाची शब्द ही क्रिया का आधार हो तो वहाँ पर कालाधिकरण होता है।
जैसे - मैं अभी आधे घंटे में आता हूँ।
मैं जल्द ही अयोध्या पहुँच जाऊंगा।
इन वाक्यों में समय ही वाक्य और क्रिया का आधार है।
भावाधिकार (भावाधिकरण)
जिन वाक्यों में कोई क्रिया की क्रिया का आधार हो वहाँ पर भावाधिकरण होता है।
जैसे - राघव पढ़ने में तेज है।
सुमन दौड़ने में तेज़ है।
ईश्वर करे, आप उन्नति करें ।
8. संबोधन कारक
परिभाषा :- " संज्ञा के जिस शब्द से किसी को पुकारने, संबोधित करने या सावधान करने का बोध हो उसे संबोधन कारक कहते हैं।"
संबोधन का प्रयोग अधिकांश कर्ता का किया जाता है। बहुवचन में भी संबोधन का नियम लागू नहीं होता और साथ ही सर्वनाम का भी कोई संबोधन नहीं होता है यह सिर्फ संज्ञा के पदों में ही इस्तेमाल किया जाता है।
जैसे - देवियों और सज्जनों! मैं आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ।
मित्रों ! हमें अब चलना चाहिए।
प्यारे बच्चों! सभी एक पंक्ति में खड़े हो जाओ।
आज आपने जाना
हां तो दोस्तों आशा करते हैं कि आपको हमारी आज की यह पोस्ट "Karak in hindi" पसंद आई होगी। आज की इस पोस्ट में हमने जाना कि ' कारक की परिभाषा' क्या होती है और कारक के कितने भेद होते हैं ? । दोस्तों हमने इस पोस्ट में यही प्रयास किया है की आपको इससे जुड़ी सभी जानकारी सरल भाषा मे बता सकें। फिर भी अगर आपके मन मे कोई सवाल हो तो हमसे कमेंट में पूछ सकते हैं।
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