उत्प्रेक्षा अलंकार - Utpreksha alankar की परिभाषा, उदाहरण अर्थ तथा भेद। जानिये विस्तार से हिंदी में

SUSHIL SHARMA
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Utpreksha alankar: नमस्कार दोस्तों। हिंदी विज़न में आपका स्वागत है। आज हम बात करने वाले हैं "उत्प्रेक्षा अलंकार" के बारे में। अलंकार वह तत्व होते है जो किसी भी काव्य की शोभा को बढ़ा देते है। अलंकार के कई भेद होते हैं जिनमे से उत्प्रेक्षा अलंकार भी एक है। आज की इस पोस्ट में हम आपको उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा और उसके उदाहरण भी देंगे जो सभी वर्ग और कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी होंगे। 

तो चलिए बिना किसी देरी के शुरू करते हैं - 


उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा

परिभाषा -  "जहाँ उपमेय में उपमान होने की संभावना का वर्णन हो वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।"

सरल शब्दों में कहें तो जहां पर एक विषय, वस्तु, भाव, रूप या गुण आदि को किसी दूसरे विषय, वस्तु, भाव, रूप या गुण के समान बताने का संभावित प्रयास किया जाता है। इसमें संभावना की प्रधानता होती है और इसे ही व्यक्त किया जाता है। 

उत्प्रेक्षा अलंकार के लक्षण

यदि प्रस्तुत पंक्ति में जानो, मानो, मानहुँ, मनु, जनु, इव, ज्यों आदि शब्द आएं हो तो वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। 


जैसे  - अति कटु बचन कहत कैकेयी
          मानहुँ लोन जरे पर देहि। 

यहाँ पर कैकेयी के कटु वचन की पीड़ा को जली हुई देह पर नमक लगने जैसी संभावना की जा रही है। संभावना का यही गुण उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।



उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा व उदाहरण


उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद 

उत्प्रेक्षा अलंकार के तीन भेद होते हैं -

1. वस्तुप्रेक्षा अलंकार 

जहां पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत होने की संभावना प्रदर्शित होती है या प्रदर्शित करने का प्रयास होता है वहां पर वस्तुप्रेक्षा अलंकार होता है। 

जैसे -  उन्नत हिमालय के धवल, वह सुरसरि यों टूटती,
          मानों पयोधर से धारा के , दुग्ध धारा छूटती । 

यहाँ पर हिमालय से निकलती हुई गंगा (उपमेय) को पृथ्वी की छाती से निकलती हुई दूध की धारा (उपमान)  के जैसे होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

2. हेतुप्रेक्षा अलंकार

जहाँ पर हेतु में अहेतु होने की संभावना प्रदर्शित हो वहाँ पर हेतुप्रेक्षा अलंकार होता है। 

सरल शब्दों में  कहें तो जहां पर वास्तविक कारण के स्थान पर किसी अन्य को कारण (हेतु) मान लिया जाता है वहां हेतुप्रेक्षा अलंकार होता है। 

जैसे - मानो कठिन आंगन चली, ताते राते पायँ । 

यहां पर स्त्री के पैर लाल हो गए हैं , कवि संभावना जता रहे है कि वह कठोर आंगन में पैदल चली है इसी कारण उसकी ये दशा हुई है। परंतु यह सिर्फ संभावना है और स्पष्ट कारण नही मिल रहा। अर्थात यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है। 

3. फलोत्प्रेक्षा अलंकार

जहां पर कोई वास्तविक फल न होने के कारण अफल को ही फल मान लिया जाता है उसे फलोत्प्रेक्षा अलंकार कहते हैं। 

जैसे - तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
        झूके कूल सों जल परसन, हिल मनहुँ सुहाये

यहाँ पर वृक्ष यमुना नदी की ओर झुके हुए हैं। कवि कहना चाहता है कि वृक्ष जल को स्पर्श करने की लालसा (फल) के  लिए झुके जा रहे हैं। जबकि पेड़ों का नदी की ओर झुकना स्वाभाविक है। इसमें अफल में  फल होने की संभावना की जा रही है। अतः यहाँ फलोत्प्रेक्षा अलंकार है। 



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उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण 

1 . दादुर धुनि चहुँ ओर सुहाई। वेद पढ़त जनु बटु समुदाई ।।

यहाँ पर मेंढकों की आवाज (उपमेय) को वेदपाठियों के वेद पढ़ने की ध्वनि (उपमान) के जैसा होने की संभावना की जा रही है।


2. नाना-रंगी जलद नभ में दीखते हैं अनूठे।
    योधा मानो विविध रंग के वस्त्र धारे हुए हैं।।

यहाँ पर विभिन्न रंगों के बादलों (उपमेय) को विभिन्न रंग के वस्त्र पहने हुए योद्धाओं (उपमान) जैसा दिखने की संभावना की जा रही है


3. सोहत ओढे़ पीत पट स्याम सलोने गात।
    मनों नीलमणि सैल पर, आतप परयो प्रभात।।

यहाँ पर भगवान श्रीकृष्ण के पीले वस्त्रों में शोभा (उपमेय) को नीलमणि पर्वत पर सुबह में पड़ने वाली सूर्य की आभा (उपमान) के जैसा होने की संभावना की जा रही है


  4 . अति कटु बचन कहत कैकेयी। 
        मानहुँ लोन जरे पर देहि।।

यहाँ पर कैकेयी के कटु वचन की पीड़ा को जली हुई देह पर नमक लगने जैसी संभावना की जा रही है। संभावना का यही गुण उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।


5 .  जान पड़ता है नेत्र देख बड़े बड़े
     हीरकों में गोल नीलम हैं जड़े

यहाँ पर बड़ें बड़े नेत्रों (उपमेय) को हीरों में जड़े नीलम (उपमान) के समान दिखने की कल्पना की जा रही है। 

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण


उत्प्रेक्षा अलंकार के अन्य उदाहरण


6. नील परिधान बीच सुकुमार,
    खुला रहा मृदुल अधखुला अंग।
    खिला हो ज्यों बिजली के फूल,
     मेघवन बीच गुलाबी रंग ।

7. प्राण प्रिया मुख जगमगाती, नीले अंचल चीर।
    मनहुँ कलानिधि झलमलै, कालिन्दी के नीर।।

8. नीको सतु ललाट पर, टीको जरित जराइ।
   छबिहिं बढावत रवि मनौ, ससि मंडल में आइ।।

9. जान पड़ता है नेत्र देख बड़े बड़े
    हीरकों में गोल नीलम हैं जड़े

10. उर असीम नील अंचल में,
    देख किसी की मृदु मुस्कान ।
    मानो हंसी हिमालय की है, 
    फूट चली करती काल गान

11. सखि ! सोहत गोपाल के उर गुंजन की माल।
    बाहर लसत मनो पिये, दावानल की ज्वाल ।।

12. विकसि प्रात में जलज ये, सरजल में छबि देत।
       पूजत भानुहि मनहु ये, सिय मुख समता हेत।।

13 . पद्मावती सब सखी बुलाई।
        जनु फुलवारी सबै चलि आई।।

14.  लता भवन ते प्रगट भे, तेहि अवसर दोउ भाय।
       मनु निकसे जुग बिमल बिधु, जलद पटल बिलगाय।।

15  पुलक प्रकट करती है धरती हरित तृणों की नोकों से
      मानों झूम रहें हैं तरु भी, मंद पवन के झोंकों से 


निष्कर्ष

हां तो दोस्तों आशा करते हैं कि आपको हमारी आज की यह पोस्ट "Utpreksha alankar" पसंद आई होगी। आज की इस पोस्ट में हमने जाना कि 'उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा' और उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण दोस्तों हमने इस पोस्ट में यही प्रयास किया है की आपको इससे जुड़ी सभी जानकारी सरल भाषा मे बता सकें। फिर भी अगर आपके मन मे कोई सवाल हो तो हमसे कमेंट में पूछ सकते हैं। 

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