महात्मा गांधी पर निबंध | Mahatma Gandhi Essay in hindi

SUSHIL SHARMA
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Mahatma Gandhi Essay in hindi - महात्मा गाँधी पर निबंध :  जैसा कि पोस्ट के टाइटल से ही स्पष्ट हो जाता है कि आज हम बात करने वाले हैं महात्मा गाँधी जी के बारे मे। आज की इस पोस्ट में हम महात्मा गांधी के बारे में हर प्रकार के निबंध जैसे "महात्मा गाँधी पर निबंध 100 शब्दों में", "Mahatma Gandhi par nibandh 150 shabdon me",   "महात्मा गाँधी पर निबंध 200 शब्दों में", महात्मा गाँधी पर निबंध 1000 शब्दों में आदि प्रदान करेंगे जिससे सभी कक्षाओं के Students के लिए उनके अनुसार निबंध मिल सके। 

तो चलिए बिना किसी देरी के Essay in hindi on mahatma gandhi  शुरू करते है - 

महात्मा गाँधी पर निबंध - Essay on Mahatma Gandhi in hindi

Mahatma Gandhi essay in hindi 


शब्दों के अनुसार महात्मा गांधी पर निबंध को चार भागों में चार भागों में प्रदान करने वाले हैं-

महात्मा गाँधी पर निबंध 100 शब्दों में

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर गांव में हुआ था। महात्मा गांधी का हमारे देश को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद करवाने में हम योगदान था। महात्मा गांधी हिंसा के विरोधी थे और उन्होंने सदैव अहिंसा का रास्ता अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गुजरात से और वकालत की शिक्षा लंदन से पूरी की । उन्होंने 1930 में दांडी यात्रा कर सत्याग्रह किया। 15 अगस्त 1947 को हमारा देश अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हो गया । महात्मा गांधी के योगदान के कारण ही उन्हें राष्ट्रपिता कहा जाता है और सभी भारतवासी उन्हें प्यार से बापू कह कर पुकारते हैं। 



Mahatma Gandhi Essay in hindi - 150 words

हमारे प्यारे बापू जिन्हें हम महात्मा गांधी के नाम से जानते हैं। उनका जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। महात्मा गांधी के पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतलीबाई था। महात्मा गांधी के घर की आर्थिक स्थिति मध्यम स्तर की रही। उनके पिता करमचंद गांधी राजकोट के दीवान थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में ही प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए वह लंदन गए । वहां पर उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की। 

कुछ समय बाद वह दक्षिण अफ्रीका गए। उसके बाद वह भारत वापस आए यहां पर अंग्रेजी हुकूमत की तानाशाही देखकर उनका मन व्यथित हो उठा पता उन्होंने अपने देश को आजाद कराने की ठान ली। उन्होंने अंग्रेजी सरकार का विरोध करना प्रारंभ कर दिया और कई आंदोलनों में हिस्सा लिया। इसके चलते वह कई बार जेल में भी रहे परंतु उन्होंने हिंसा का मार्ग नहीं अपनाया और सदैव अहिंसा की शिक्षा दी और हमारे देश को आजाद करवाने में अपना अवर्णनीय सहयोग दिया। 



महात्मा गाँधी पर हिंदी में निबंध 200 शब्दों में

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर जिले में हुआ था। महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। इनके पिताजी श्री करमचंद गांधी पोरबंदर के छोटी सी रियासत के दीवान थे। इनके घर का माहौल धार्मिक प्रवृत्ति का था। इसका सीधा प्रभाव महात्मा गांधी के चरित्र पर पड़ा। उन्होंने आजीवन अहिंसा का मार्ग अपनाया और हिंसा का मार्ग त्यागने के लिए लोगों को प्रेरित किया। 

 उनका विवाह 13 वर्ष की उम्र में कस्तूरबा गांधी से करवा दिया गया । उनके बारे में शिक्षा पोरबंदर में संपन्न हुई इसके बाद में उन्हें राजकोट से मैट्रिक उत्तीर्ण कर वकालत पढ़ने के लिए लंदन गए। उन्होंने अपने जीवन में सदैव शिक्षा को बढ़ावा दिया  और भारतीय शिक्षा को द ब्यूटीफुल ट्री कहा। महात्मा गांधी ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया उनका मानना था कि छात्र को शिक्षा की मातृभाषा में प्रदान करनी चाहिए क्योंकि शिक्षा ही बालक के मानवीय गुणों का विकास करती है। 

वकालत करने के बाद भारत आने पर उनको भारत की दशा को सुधारने की प्रेरणा मिली। उन्होंने शांति सत्य अहिंसा के मार्ग पर चलकर अंग्रेजों का पुरजोर विरोध किया और दांडी मार्च के माध्यम से सत्याग्रह नमक आंदोलन चलाएं और अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला कर रख दी। उनके इस योगदान के कारण उन्हें राष्ट्रपिता कहा जाता है। 

महात्मा गांधी पर निबंध 300 शब्दों में

संपूर्ण विश्व को  का मार्ग बताने वाले हैं महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर जिले में हुआ था। अहिंसा को अपने हथियार बनाकर कई आंदोलन करके हमें गुलामी की बेड़ियों से आजाद करवाया। महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। 

इनका जन्म पोरबंदर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ उनके पिता करमचंद गांधी काठियावाड़ के एक छोटे से रियासत के दीवान थे। उनकी माता पुतलीबाई ग्रहणी थी। इनके घर का माहौल काफी धार्मिक था इसका सीधा प्रभाव महात्मा गांधी के चरित्र पर पड़ा। यही कारण रहा कि महात्मा गांधी काफी सरल दयालु वह सभी से प्रेम करने वाले थे। वह हिंसा का सदैव विरोध करते थे।

महात्मा गांधी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर गुजरात से पूरी की इसके पश्चात 13 वर्ष की आयु में गांधीजी का विवाह कस्तूरबा से हो गया था। इसके बाद उन्हें वकालत की पढ़ाई के लिए लंदन जाना पड़ा। उन्होंने अपनी वकालत की पढ़ाई 1891 में पूरी की ।

भारत वापस आने के बाद महात्मा गांधी ने देखा कि अंग्रेजी सरकार तानाशाही रूप में शासन कर रही है अतः महात्मा गांधी ने उनके खिलाफ समाज को एकजुट करने की कोशिश शुरू कर दी उन्होंने बिहार के चंपारण में जाकर किसानों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई। 

सन 1920 में महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया । 1930 में उन्होंने असहयोग आंदोलन की स्थापना की तत्पश्चात उन्होंने 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया इन सभी आंदोलनों के दौरान वह कई बार जेल में रहे परंतु उन्होंने अपनी आवाज को कम नहीं होने दिया।

महात्मा गांधी ने जीवन में शिक्षा को बहुत ही अधिक महत्व दिया उनका मानना था कि शिक्षा से संपूर्ण विश्व को जीता जा सकता है । 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हो गया से कुछ ही महीनों बाद 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति ने महात्मा गांधी को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी और आजादी के नायक ने दुनिया को अलविदा कह दिया।



महात्मा गांधी पर निबंध 1000 शब्दों में 

"चल पड़े जिधर दो पग डगमग,
चल पड़े कोटि पग उसी ओर,
पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि,
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर ।” 

हिन्दी के मूर्धन्य कवि सोहनलाल द्विवेदी ने जिस महान् व्यक्ति का वर्णन करते हुए ऐसा लिखा है वे कोई और नहीं, बल्कि भारत के 'राष्ट्रपिता' मोहनदास करमचन्द गाँधी हैं। सम्पूर्ण विश्व में महात्मा गाँधी के नाम से विख्यात गाँधीजी द्वारा अपनायी गई सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह की नीति ने न केवल भारत, बल्कि विश्व राजनीति को भी नई दिशा एवं दशा प्रदान की।

महात्मा गाँधी का जीवन परिचय

महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर एक समृद्ध परिवार में हुआ था। उनके पिता करमचन्द गाँधी पोरबन्दर के दीवान थे। उनकी माता पुतलीबाई अत्यन्त धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। घर के धार्मिक परिवेश का प्रभाव मोहनदास पर भी पड़ा इसीलिए उन्होंने राजनीति में आने के बाद भी धर्म का साथ नहीं छोड़ा।

गाँधीजी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबन्दर के एक स्कूल में हुई। प्रवेश परीक्षा के बाद उन्हें उच्च शिक्षा के लिए भावनगर के श्यामलदास कॉलेज में भेजा गया, किन्तु वहाँ उनका मन नहीं लगा। बाद में उनके भाई लक्ष्मीदास ने उन्हें बैरिस्टर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड भेज दिया।

इंग्लैण्ड जाने से पहले ही मात्र तेरह वर्ष की आयु में उनका विवाह कस्तूरबा गाँधी से हो गया था। 1891 ई. में गाँधीजी इंग्लैण्ड से बैरिस्टरी पास कर स्वदेश आए और बम्बई में वकालत प्रारम्भ कर दी। गाँधीजी के सामाजिक क्रान्तिकारी जीवन का शुभारम्भ 1893 ई. में तब हुआ, जब उन्हें एक मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ उन्होंने अंग्रेज़ों को भारतीयों एवं वहाँ के मूल निवासियों के साथ बहुत बुरा व्यवहार करते देखा। वहाँ अंग्रेज़ों ने कई बार गाँधीजी को भी अपमानित किया। फलतः उन्होंने अंग्रेज़ों के अपमान के विरुद्ध मोर्चा सँभालते हुए अपने विरोध के लिए सत्याग्रह एवं अहिंसा का रास्ता चुना। 

वे जब तक दक्षिण अफ्रीका में रहे, वहाँ बसे हुए भारतीयों एवं अश्वेतों को उनके मानव सुलभ अधिकार दिलाने का प्रयत्न करते रहे। उन्होंने अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अफ्रीका प्रवास के दौरान लोगों को शिक्षित करने के लिए अध्यापक के रूप में, गरीबों की सेवा के लिए चिकित्सक के रूप में, कानूनी अधिकार के लिए अधिवक्ता के रूप में एवं जनता को जागरूक करने के लिए पत्रकार के रूप में कार्य किए। अपने जीवनकाल में उन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की। 'माई एक्सपेरिमेण्ट्स विद् ट्रुथ’ उनकी विश्वप्रसिद्ध आत्मकथा है।

गाँधीजी द्वारा चलाए गए आन्दोलन

दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी के द्वारा किए गए कार्यों की ख्याति भारत में भी फैल चुकी थी, इसलिए जब वे स्वदेश बापस आए, तो उनका गोपालकृष्ण गोखले एवं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने भव्य स्वागत किया। भारत में गाँधीजी ने जो पहला महत्त्वपूर्ण कार्य किया, वह था- बिहार के चम्पारण जिले के नीलहे किसानों को अंग्रेज़ों से मुक्ति दिलाना। वर्ष 1917 में गाँधीजी के सत्याग्रह के फलस्वरूप ही चम्पारण के किसानों का शोषण समाप्त हो सका।

भारत में अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए गाँधीजी ने गुजरात के अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। इसके बाद अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध उनका संघर्ष प्रारम्भ हुआ और भारतीय राजनीति की बागडोर एक तरह से उनके हाथ में आ गई। वे जानते थे कि सामरिक रूप से सम्पन्न ब्रिटिश सरकार से भारत को मुक्ति, लाठी और बन्दूक के बल पर नहीं मिल सकती, इसलिए उन्होंने सत्य और अहिंसा की शक्ति का सहारा लिया। अपने पूरे संघर्ष के दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। अंग्रेज़ों का विरोध करने के लिए वर्ष 1920 में उन्होंने असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया।

अंग्रेज़ों ने जब नमक पर कर लगाया, तो गाँधीजी ने 13 मार्च, 1930 को अपनी डाण्डी यात्रा आरम्भ की और 24 दिनों की यात्रा के पश्चात् अपने हाथों से डाण्डी में नमक बनाकर कानून तोड़ा तथा 'सि अवज्ञा' आन्दोलन चलाया। इस बीच वे गाँधी-इरविन समझौते के लिए इंग्लैण्ड भी गए, किन्तु यह समझौता अंग्रेज़ों की बदनीयती के कारण टूट गया, परिणामस्वरूप यह आन्दोलन वर्ष 1934 तक चलता रहा। 

वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान लोगों को 'करो या मरो' का नारा देकर इस आन्दोलन में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। गाँधीजी के प्रयत्नों से अन्तत: भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्र हुआ। वर्ष 1920 से लेकर 1947 तक भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में गाँधीजी की भूमिका के कारण इस युग को ‘गाँधी युग' की संज्ञा दी गई है।

गाँधीजी के सुधार व विचार


एक राजनेता के अतिरिक्त गाँधीजी ने एक समाज सुधारक के रूप में जातिवाद, छुआछूत, नशाखोरी, बहुविवाह, पर्दाप्रथा तथा साम्प्रदायिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए अनेक कार्य किए। गाँधीजी जीवनभर हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर रहे, किन्तु आज़ादी मिलने के बाद वे इस एकता को बनाए नहीं रख सके, इसलिए धर्म के नाम पर जब भारत के विभाजन की बात शुरू हुई, तो वे बहुत दुःखी हुए। वे नहीं चाहते थे कि विभाजन हो, किन्तु परिस्थितियाँ ऐसी बन गईं कि विभाजन को नहीं रोका जा सका।

दु:ख की बात यह है कि गाँधीजी को समझने में हिन्दू और मुसलमान दोनों से ही भूल हुई। कट्टरवादी मुस्लिमों की प्रतिक्रिया में भारत में भी एक कट्टरवादी हिन्दू संगठन पैदा हो गया। पाकिस्तान बनने के बाद भी गाँधीजी पाकिस्तान की आर्थिक मदद करना चाहते थे। कट्टरवादी हिन्दू संगठनों ने गाँधीजी की इस नीति का विरोध किया। 30 जनवरी, 1948 को जब वे प्रार्थना सभा में जा रहे थे, तब नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति ने गोली मारकर उनकी निर्मम हत्या कर दी। इस तरह, सत्य और अहिंसा के इस महान् पुजारी का दुःखद अन्त हो गया। गाँधीजी ने अपने स्वनिर्भर सिद्धान्त के तहत खादी एवं चरखा को प्रोत्साहित किया। साथ ही लघु एवं कुटीर उद्योग व अन्य ग्रामोद्योग को प्रोत्साहित करने पर बल दिया।

निष्कर्ष

गाँधी जी भले ही आज हमारे बीच न हों, किन्तु उनके विचार प्रासंगिक हैं तथा पूरी दुनिया को रास्ता दिखाते हैं। गाँधीजी के दर्शन के चार आधारभूत सिद्धान्त हैं- सत्य, अहिंसा, प्रेम और सद्भाव । उनका विश्वास था कि सत्य ही परमेश्वर है। उन्होंने सत्य की आराधना को भक्ति माना। मुण्डकोपनिषद् से लिए गए राष्ट्रीय वाक्य सत्यमेव जयते के रणास्रोत गाँधीजी हैं। गाँधीजी की अहिंसा का अर्थ है- मन, वाणी तथा कर्म से किसी को आहत न करना । उनका विचार था कि अहिंसा के बिना सत्य की खोज असम्भव है। अहिंसा साधन है और सत्य साध्य । शान्ति प्रेमी टॉलस्टाय (रूस) तथा हेनरी डेविड थारो (अमेरिका) उनके आदर्श थे।

के गाँधी जी ने अपने सिद्धान्तों से समझौता नहीं किया। काका कालेलकर के शब्दों में- “गाँधीजी सर्वधर्म समभाव प्रणेता थे। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्' का सिद्धान्त उनके जीवन का मूलमन्त्र था। उनके हृदय में प्रेम और सभी धर्मों के प्रति आदर भाव था, इसलिए वे 'बापू' और 'राष्ट्रपिता' कहलाए।"

अल्बर्ट आइंस्टाइन के अनुसार, “सम्भव है आने वाली पीढ़ियाँ, शायद ही विश्वास करें कि महात्मा गाँधी की तरह कोई व्यक्ति इस धरती पर हुआ था ।”

गाँधी जी के योगदान को सम्मानित करने के लिए प्रत्येक वर्ष 2 अक्टूबर को पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में तथा भारत में गाँधी जयन्ती के रूप में मनाया जाता है तथा इस दिन को राष्ट्रीय त्योहार की मान्यता प्राप्त है।

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