प्रदूषण पर निबंध | Essay on pollution in hindi

SUSHIL SHARMA
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Pradushan par nibandh: आज हम बात करने वाला है प्रदूषण के बारे में और जानेंगे 'प्रदूषण पर निबंध'। यह एक महत्वपूर्ण टॉपिक है जो अक्सर परीक्षाओं में लिखने के लिए दिया जाता है। आज हम आपको पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध के कई उदाहरण प्रस्तुत करेंगे जिनमें 100, 250, 500 व 1000 शब्दों में निबंध प्रदान किये जा रहे है। इसके अलावा हम वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण और रेडियोएक्टिव प्रदूषण के निबंध भी प्रस्तुत करेंगे।  विद्यार्थी अपने अनुसार उनका चयन कर सकते हैं। 

तो चलिए बिना किसी देरी के शुरू करते हैं -

प्रदूषण पर निबंध -Esaay on Pollution in hindi

Pradushan par nibandh - essay on pollution in hindi


सबसे पहले 100 शब्दों मे पर्यावरण प्रदूषण के बारे में निबंध - 

प्रदूषण पर निबंध 100 शब्दों में 

प्रदूषण हमारे पर्यावरण के लिए एक गंभीर समस्या है। वायु, जल, और धरती प्रदूषण का शिकार हैं, जिससे धरती पर पर्यावरण संतुलन खतरे में है। वायु प्रदूषण के कारण वायुमंडलीय परिवर्तन, उच्च तापमान, और जलवायु की परेशानी होती है। जल प्रदूषण के कारण समुद्री जीवन, जलवायु, और मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। धरती प्रदूषण से भूमि की उपजाऊ क्षमता घटती है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर खतरा बढ़ता है। हमें उचित नियंत्रण उपायों का पालन करना चाहिए, जैसे कि वायु और जल प्रदूषण कम करना, पेड़-पौधों का संरक्षण करना, और उर्जा संयंत्रों के लिए साफ तकनीकी विकल्प अपनाना आदि। तभी हम अपनी धरती को सुंदर व प्रदूषण से रहित बना सकते हैं। 

प्रदूषण पर 200 शब्दो में निबंध 

प्रदूषण हमारे पर्यावरण के लिए एक गंभीर समस्या है। वायु, जल, और धरती प्रदूषण का शिकार हैं, जिससे धरती का स्वास्थ्य खतरे में है। विश्व का कोना कोना प्रदूषण से ग्रसित है फिर वह चाहे जल प्रदूषण हो, वायु प्रदूषण हो, मृदा प्रदूषण हो या फिर ध्वनि प्रदूषण हो। फैक्टरियों, आग और वाहनों से वायु प्रदूषण होता है। वायु प्रदूषण के कारण वायुमंडलीय परिवर्तन, उच्च तापमान, और जलवायु की परेशानी होती है। 

नदियों में डाला जाने वाला कूड़ा और गंदगी और फैक्टरियों से निकले रसायन से व दूषित जल से जल प्रदूषण होता है।  जल प्रदूषण के कारण समुद्री जीवन, जलवायु, और मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। विभिन्न प्रकार के कैमिकल्स के अंधाधुंध इस्तेमाल और अनियंत्रित क्रियाओं से भूमि की उपजाऊ क्षमता घटती है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर खतरा बढ़ता है। 

हमें उचित नियंत्रण उपायों का पालन करना चाहिए, जैसे कि - 
  • हमें जल में कैमिकल्स और गंदगी नही डालनी चाहिए। 
  • जितना संभव हो सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करें। 
  • इलेक्ट्रिक वाहनों व उपकरणों का इस्तेमाल करना चाहिए। 
  • बिजली के लिए सौर ऊर्जा के इस्तेमाल पर अधिक जोर देना चाहिए। 

प्रदूषण पर निबंध 250 शब्दों में


प्रस्तावना

प्रदूषण एक विश्वव्यापी समस्या है जो हमारे पृथ्वी के स्वास्थ्य और पर्यावरण को प्रभावित कर रही है। वनस्पति, पशु-पक्षी और मनुष्य समाज सभी प्रकार के प्रदूषण के शिकार हैं। इसलिए, हमें प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उचित कदम उठाने की जरूरत है।

प्रदूषण के कारण

प्रदूषण के कई कारण हैं, जिनमें सड़ती जीवनशैली, औद्योगिकीकरण, वाहनों का प्रयोग, ध्वनि और वायु प्रदूषण, प्लास्टिक उत्पादन और उसके अवैध उपयोग, उपयोगिता सामग्री और केमिकल्स, आदि शामिल होते हैं।

प्रदूषण के प्रकार:


वायु प्रदूषण: वाहनों, उद्योग, ध्वनि, धूल, धुआं आदि के कारण होता है।

जल प्रदूषण: नदियों, झीलों, और समुद्रों में विभिन्न विधियों से निकलने वाले अपशिष्टों, केमिकल्स, और सेवेज़ों से होता है।

मृदा प्रदूषण: उपयोग के बाद जमीन पर निकलने वाले कृषि रसायनों और कृषि उपकरणों के कारण होता है।

जलवायु परिवर्तन: इसमें वनों का कटाव, औद्योगिकीकरण, विकास के लिए जमीन का बदलाव, विद्युतीकरण के लिए बांधों का निर्माण आदि शामिल है।

प्रदूषण के प्रभाव: प्रदूषण के कारण पृथ्वी पर कई दुर्भाग्यपूर्ण प्रभाव होते हैं। इससे वनस्पतियों और पशु-पक्षियों को नुकसान होता है, जलवायु परिवर्तन होता है, समुद्र स्तर में वृद्धि होती है, बाढ़, तूफ़ान, जलवायु बदलते हैं, और विभिन्न रोगों का संचार होता है। मनुष्य भी प्रदूषण के कारण फिजिकल, मानसिक, और सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

प्रदूषण को रोकने के उपाय:

जल और वायु प्रदूषण के लिए नियंत्रण उपायों को अपनाना।
बिजली के लिए अल्टर्नेटिव स्रोतों का उपयोग करना।
वाहनों में प्रदूषण नियंत्रित करने वाली तकनीकों को बढ़ाना। 
औद्योगिक संस्थानों को शुद्धता के पालन के लिए प्रोत्साहित करना।

उपसंहार 

एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते हमें प्रदूषण फैलाने वाली वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और प्रदूषण को कम करने के लिए वृक्षारोपण करना चाहिए लोगों को इसके प्रति जागरूक करना चाहिए।



पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध 

धरती के प्राणियों एवं वनस्पतियों को स्वस्थ व जीवित रहने के लिए हमारे पर्यावरण का स्वच्छ रहना अति आवश्यक है, किन्तु मानव द्वारा स्वार्थ सिद्धि हेतु प्रकृति का इस प्रकार से दोहन किया जा रहा है कि हमारा पर्यावरण दूषित हो चला है। आज पर्यावरण प्रदूषण भारत की ही नहीं, बल्कि विश्व की एक गम्भीर समस्या बन गया है। इस समस्या से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। 

हमारी पूर्व प्रधानमन्त्री स्व. श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने कहा था"यह बड़े दुःख की बात है कि एक के बाद दूसरे देश में विकास का तात्पर्य प्रकृति का विनाश समझा जाने लगा है। जनता को अच्छी विरासत से दूर किए बिना और प्रकृति के सौन्दर्य, ताज़गी व शुद्धता को नष्ट किए बिना ही मानव जीवन में सुधार किया जाना चाहिए।"

पर्यावरण दो शब्दों 'परि' एवं 'आवरण' से मिलकर बना है, जिसमें 'परि' का आशय है 'चारों ओर से' तथा आवरण का अर्थ है 'ढका हुआ' अर्थात् समस्त जीवधारियों तथा वनस्पतियों के चारों ओर का आवरण ही पर्यावरण है। गिस्बर्ट के अनुसार, ‘‘पर्यावरण का तात्पर्य प्रत्येक उस दशा से है जो किसी तथ्य (वस्तु अथवा मनुष्य) को चारों ओर से घेरे रहती है तथा उसे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।” 

सामान्य रूप में 'पर्यावरण' की 'प्रकृति' से समानता प्रदर्शित की जाती है, जिसके अन्तर्गत भौतिक घटकों (पृथ्वी, जल, वायु आदि) तथा जैविक घटकों (पौधे, जन्तु, सूक्ष्म जीव तथा मानव इत्यादि) को शामिल किया जाता है।

मानव, जीव-जन्तु एवं पेड़-पौधों सभी को स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ पर्यावरण की आवश्यकता होती है, लेकिन जब प्राकृतिक या मानवीय कारणों से पर्यावरणीय संरचना में कुछ अवांछित तत्त्व प्रवेश कर जाते हैं, तो उसे पर्यावरण प्रदूषण की संज्ञा दी जाती है। यह भूमि, वायु, ध्वनि एवं जल प्रदूषण आदि के रूप में मानव जीवन व पारिस्थितिकी को प्रभावित करता है। 6-7 मई, 2020 को आन्ध्र प्रदेश के एलजी पॉलिमर्स कम्पनी का स्टाइरिन नामक गैस रिसाव तथा जून, 2020 में असम में गैस रिसाव ने भी मानव जीवन को प्रभावित कर पारितन्त्र को दूषित किया है। अ

सामान्य रूप से पर्यावरण प्रदूषण को निम्न प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि/मृदा प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण, समुद्री प्रदूषण, ठोस अपशिष्ट प्रदूषण, ई-कचरा प्रदूषण, अन्तरिक्ष प्रदूषण तथा प्लास्टिक प्रदूषण इत्यादि ।

वायु प्रदूषण पर निबंध - Essay on Air pollution 

वायु प्रदूषण पर निबंध - essay on air pollution 



जब मानवीय या प्राकृतिक कारणों से वायुमण्डल की गैसों की निश्चित मात्रा और अनुपात में अवांछनीय परिवर्तन हो जाता है या वायु में इन गैसों के अतिरिक्त कुछ अन्य विषाक्त या कणिकीय पदार्थ मिल जाते हैं, तो यह वायु प्रदूषण कहलाता है।

वायु प्रदूषण के कारण 

वायुं प्रदूषण प्राकृतिक एवं मानवीय कारकों द्वारा होता है। प्राकृतिक कारकों में ज्वालामुखी विस्फोट, जंगल की आग, पशुओं द्वारा जुगाली की क्रिया, कुहरा, परागकण, उल्कापात आदि हैं, परन्तु प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न वायु प्रदूषण कम खतरनाक होता है, क्योंकि प्रकृति में स्व-नियन्त्रण क्षमता होती है।

मानवीय क्रियाकलापों में वनोन्मूलन, मोटर वाहनों का अंधाधुंध प्रयोग, लकड़ी, कोयला एवं उपले जैसे पदार्थों को जलाने से उत्पन्न धुआँ, कारखानों से निकलने वाला धुआँ, ताप विद्युतगृह, कृषि कार्य, खनन, रासायनिक पदार्थ आदि का प्रयोग और आतिशबाजी द्वारा वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।

विकसित तथा विकासशील देशों में विकास एवं अन्य मानकों में आगे निकलने की प्रतिस्पर्द्धा ने पर्यावरण को इतना अधिक प्रदूषित का दिया है कि आज वैश्विक परिदृश्य में जलवायु परिवर्तन, भूमण्डलीय तापन तथा ओजोन क्षरण की समस्या ने मानव के अस्तित्व के समक्ष ही संकट खड़ा कर दिया है।

वायु प्रदूषण के प्रभाव


● वातावरण में अवांछित गैसों की उपस्थिति से मनुष्य, पशुओं तथा पक्षियों को गम्भीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे दमा, अन्धापन, श्रवण ह्रास होना, त्वचा रोग आदि बीमारियाँ पैदा होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रत्येक वर्ष 2 से 4 लाख लोगों की मौत का मुख्य कारण वायु प्रदूषण है।

● दुनियाभर की बीमारियों पर नजर रखने वाली संस्था 'ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिसीज' के अनुसार भारत में श्वास (वायु) से जुड़ी बीमारियाँ बड़ी तेजी से ऐसी खतरनाक महामारी में परिवर्तित होती जा रही हैं, जिन पर यदि तत्काल ध्यान नहीं दिया गया तो इसके भयंकर परिणाम होंगे।

● वायु प्रदूषण के कारण अम्लीय वर्षा का खतरा बढ़ गया है, क्योंकि वर्षा के जल में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन-डाइऑक्साइड आदि जहरीली गैसों के घुलने की सम्भावना बढ़ी है, जिससे पेड़-पौधे, भवन व ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुँचा है।

वायु प्रदूषण के नियन्त्रण के उपाय


● स्वचालित वाहनों में यथासम्भव पेट्रोल के स्थान पर सम्पीडित प्राकृतिक गैस (Compressed Natural Gas, CNG) का प्रयोग किया जाए। वर्तमान वायु प्रदूषण के स्तरों की जाँच के लिए व्यापक सर्वेक्षण और अध्ययन किया जाए और प्रदूषण की नियमित मॉनिटरिंग की जानी चाहिए।

● ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए; जैसे-ज्वारीय ऊर्जा, जैव ऊर्जा, पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, जल विद्युत ऊर्जा आदि ।

● स्वचालित वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए गाड़ियों में 'स्क्रबर' आदि लगे होने चाहिए। फैक्ट्रियों की चिमनियों में बैग फिल्टर लगा होना आवश्यक है, जिससे 50 माइक्रोमीटर से कम व्यास वाले कणकीय पदार्थ पृथक् किए जा सकें।

● डीजल की गाड़ियों में अतिसूक्ष्म मात्रा में सल्फर युक्त डीजल (Ultra Low Sulphur Diesel, ULSD) या हरित डीजल का प्रयोग किया जाए।

● इसके अतिरिक्त वाहनों के अन्य वैकल्पिक ईंधन; जैसे- कोलबैड मीथेन, बायोडीजल आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है।

● प्राणघातक प्रदूषण उत्पन्न करने वाली सामग्रियों तथा तत्त्वों; जैसे-ओजोन क्षय करने वाले क्लोरोफ्लोरो कार्बन के उत्पादन व उपभोग में भारी कटौती होनी चाहिए।

वायु प्रदूषण के नियन्त्रण हेतु भारत सरकार के प्रयास


केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड (Cpcb) भारत में परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम का संचालन करता है, जसे राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम के नाम से जाना जाता है। इसका उद्देश्य परिवेशी वायु गुणवत्ता मानदण्डों (National Ambient Air Quality Standards NAAQS) का अनुपालन सुनिश्चित करना तथा वायु प्रदूषण के नियन्त्रण व निवारण हेतु कदम उठाना है।

इसे वर्ष 1982 में लागू किया गया था। वर्ष 1981 में भारत सरकार द्वारा वायु प्रदूषण निवारण तथा नियन्त्रण) अधिनियम, 1981 अधिनियमित किया गया। इस अधिनियम के अनुसार केन्द्र व राज्य सरकार दोनों को वायु प्रदूषण से होने वाले प्रभावों का सामना करने के लिए निम्नलिखित शक्तियाँ दी गई हैं 

  • राज्य के किसी भी क्षेत्र को वायु प्रदूषित क्षेत्र घोषित करना और प्रदूषण नियन्त्रित क्षेत्र में औद्योगिक क्रियाओं को रोकना औद्योगिक इकाई स्थापित करने से पहले बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण-पत्र लेना।
  • प्रदूषित इकाइयों को बन्द करने का अधिकार इत्यादि।
  • जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय द्वारा अक्टूबर, 2014 में वायु गुणवत्ता सूचकांक जारी किया गया, जिसका उद्देश्य देश के प्रमुख शहरों में हवा की गुणवत्ता की निगरानी करना है।
  • वायु गुणवत्ता की जाँच करने वाली मोबाइल एप्प सेवा सफर (System of Air Quality Forecasting and Research SAFAR) का विकास किया गया है।
  • केन्द्रीय मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2016 के अन्तर्गत केन्द्र सरकार ने 1 अप्रैल, 2020 से पेट्रोल तथा डीजल वाहनों के लिए बीएस-4 से सीधे बीएस-6 मानक अपनाने का निर्णय लिया है।
  • जनवरी, 2018 में केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय ने ग्रीन गुड डीड्स कार्यक्रम शुरू किया था। इसके तहत आम लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने और इसके संरक्षण में उन्हें शामिल किया जाता है। 


जल प्रदूषण पर निबंध - Esaay on Water pollution

जल प्रदूषण पर निबंध - essay on water pollution 



जल में किसी प्रकार की अवांछनीय गैस, द्रव्य या ठोस पदार्थों का मिलना ही जल प्रदूषण कहलाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, “प्राकृतिक अथवा अन्य स्रोतों से उत्पन्न अवांछित बाहरी पदार्थों के कारण जल दूषित हो जाता है तथा यह विषाक्तता एक सामान्य स्तर से कम ऑक्सीजन के कारण जीवों के लिए हानिकारक होती है, इससे संक्रामक रोगों का फैलाव बढ़ जाता है ।"

जल प्रदूषण के प्रमुख कारण


  •  औद्योगिक कचरों तथा कार्बनिक विषाक्त पदार्थों सहित अन्य उत्पादों का जल स्रोतों में डाला जाना। कारखानों से वाहित अपशिष्ट में उपस्थित विभिन्न प्रकार के हानिकारक रासायनिक पदार्थ एवं भारी धातुएँ ।
  •  रिफाइनरियों एवं बन्दरगाहों से रिसे पेट्रोलियम पदार्थ एवं तेलयुक्त तरल द्रव्य ।
  • शहरों, नगरों तथा मलिन बस्तियों से निकले अनुपचारित घरेलू बहिस्रव, मलजल तथा ठोस कचरे इत्यादि। 
  • व्यावसायिक पशु पालन उद्यमों, पशुशालाओं एवं बूचड़ खानों से उत्पन्न कचरों का अनुचित निपटान।
  • कृषि क्रियाओं से उत्पन्न जैविक अपशिष्ट, उर्वरकों और कीटनाशकों के अवशेष इत्यादि ।
  • गर्म झील धाराएँ, विभिन्न संयन्त्रों की प्रशीतन इकाइयों से निकले गर्म जल |
  •  प्राकृतिक क्षरण योग्य चट्टानों के अवसाद तलछट, मिट्टी, पत्थर तथा खनिज तत्त्व इत्यादि । . परमाणु गृहों से उत्पन्न रेडियोधर्मी पदार्थों का गिरना ।
  • मृदा अपरदन से खनिजों के लीचिंग से भी जल प्रदूषण होता है । 

जल प्रदूषण का प्रभाव


  •  जल प्रदूषण के कारण मलेरिया, हैजा, टाइफाइड, डेंगू, पीलिया, अतिसार, पेचिस, त्वचा रोग, उदर रोग, फेफड़े खराब होना, अंगों में विकृति आना आदि हानिकारक रोग पैदा होते हैं।
  • जल प्रदूषण से उसमें घुले विषैले तत्त्वों से मिनिमाता (पारा), इटाई-इटाई (कैडमियम), केकाल फ्लोरोसिस (फ्लोराइड), ब्लू बेबी सिण्ड्रोम (नाइट्रेट), ब्लैक फुट (आर्सेनिक) आदि रोग होते हैं। साथ ही जलीय पारिस्थितिकी तन्त्र प्रभावित होता है।
  • प्रदूषित जल से भूमि की उर्वरा शक्ति प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है तथा जलीय जीवों एवं पौधों पर प्रतिकूल रूप से प्रभाव पड़ता है।
  • विश्व बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट 'क्वालिटी अननोन : द इनविजिबल बाटर क्राइसिस' 2019 में यह कहा गया है कि प्रदूषित जल कुछ देशों की आर्थिक विकास दर को एक-तिहाई कम कर रहा है।

जल प्रदूषण का नियन्त्रण


  • जल संरक्षण तथा जल प्रदूषण के नियन्त्रण के सम्बन्ध में लोगों को जागरूक करना चाहिए। इस कार्य में सरकार के साथ-साथ स्वयंसेवी संगठनों की मदद ली जानी चाहिए।
  • आम जनता को घरेलू अपशिष्ट प्रबन्धन में दक्ष करना होगा।
  • औद्योगिक प्रतिष्ठानों हेतु स्पष्ट नियम बनाए जाएँ, जिससे वे कारखानों से निकले अपशिष्टों को बिना शोधित किए नदियों, झीलों या तालाबों में विसर्जित न करें।
  • नगरपालिकाओं के लिए सीवर शोधन संयन्त्रों की व्यवस्था कराई जानी चाहिए तथा सम्बन्धित सरकार को प्रदूषण नियन्त्रण की योजनाओं के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन के लिए आवश्यक धन तथा अन्य साधन प्रदान किए जाएँ।

जल प्रदूषण के नियन्त्रण हेतु सरकार के प्रयास


  •  जल प्रदूषण पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1974 एवं वर्ष 1977 में जल प्रदूषण नियन्त्रण अधिनियम पारित किया है।
  • गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने के लिए केन्द्रीय गंगा प्राधिकरण का वर्ष 1985 में गठन किया गया था। इस प्राधिकरण का नाम वर्ष 1995 में बदलकर राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण कर दिया गया।
  • जून, 2014 में आरम्भ नमामि गंगे परियोजना के अन्तर्गत गंगा नदी को समग्र रूप से संरक्षित और स्वच्छ करने से सम्बन्धी कदम उठाए जा रहे हैं। 
  • इस परियोजना के अन्तर्गत नदी के प्रदूषण को कम करने के साथ-साथ प्रदूषण को रोकने, नदियों में गिरने वाले कचरे के शोधन तथा उसे नदी से दूसरी ओर मोड़ने जैसे कदम उठाए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त इसमें कचरा और सीवेज परिशोधन के लिए नई तकनीकी की व्यवस्था की जा रही है।
  • बायो टायलेट में बायो-डायजेस्टर का प्रयोग किया जा रहा है जिसके लिए शौचालयों के गन्दे जल या मानव अपशिष्ट के निपटान हेतु मल-जल प्रणाली की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

ध्वनि प्रदूषण पर निबंध - Esaay on Noise pollution

ध्वनि प्रदूषण पर निबंध - Essay on noise pollution


किसी भी वस्तु से जनित सामान्य आवाज को ध्वनि कहते हैं। ध्वनि की तीव्रता जब एक सीमा से अधिक हो जाती है, तो वह मानव तथा अन्य जीव-जन्तुओं के लिए घातक हो जाती है, तब उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। ध्वनि की तीव्रता को डेसीबल (DB) में मापते हैं। एक सामान्य व्यक्ति के लिए 50 डेसीबल तीव्रता की ध्वनि सुनना उपयुक्त व सामान्य होता है। 80 डेसीबल से अधिक तीव्रता की ध्वनि शोर कही जाती है।

ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख कारण


  • कारखानों की मशीनों द्वारा उत्पन्न शोर ध्वनि प्रदूषण का प्रमुख कारण है।
  • परिवहन के साधन भी ध्वनि प्रदूषण के बहुत बड़े स्रोत हैं। इनमें रेल परिवहन, वायु परिवहन तथा मोटर वाहनों के द्वारा उत्पन्न शोर को सम्मिलित किया जाता है।
  • मनोरंजन के अनेक साधनों; जैसे- टेपरिकार्डर, टेलीविजन, लाउडस्पीकर से निकली ध्वनि भी ध्वनि प्रदूषण का प्रमुख कारक है। इसके अतिरिक्त डीजे का बजना तथा पटाखों का शोर इत्यादि भी ध्वनि प्रदूषण के महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
  • इसके अतिरिक्त बादलों का गर्जना, बिजली का कड़कना, भूकम्प की ध्वनि, तेजी से गिरते पानी की ध्वनि, तूफानी हवाएँ इत्यादि भी ध्वनि प्रदूषण का कारण बनती हैं, किन्तु ये कारक क्षेत्रीय होते हैं तथा इनका प्रभाव सीमित व क्षणिक होता है।

ध्वनि प्रदूषण का दुष्प्रभाव


  • ध्वनि प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव कानों पर पड़ता है, जिससे स्थायी या अस्थायी रूप से श्रवण शक्ति प्रभावित होती है। 
  • उच्च ध्वनि से मानव में आवर्द्धित एड्रीनलीन स्तर उच्च रक्तचाप, माइग्रेन, उच्च कोलेस्ट्रोल स्तर, पेट का अल्सर, चिड़चिड़ापन, अनिन्द्रा, अधिक आक्रामक व्यवहार तथा अन्य मनोवैज्ञानिक दोष पैदा हो जाते हैं।
  • चिढ़, चिन्ता और तनाव जैसे भावात्मक या मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा होते हैं। ध्यान केन्द्रित करने की असमर्थता और मानसिक थकान शोर के महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रभाव हैं।
  • अत्यधिक तीव्र ध्वनि में लगातार काम करने से व्यक्ति बहरा भी हो सकता है।
  • अत्यधिक तीव्र ध्वनि कान के पर्दे को फाड़ सकती है।
  • अत्यधिक तीव्र ध्वनि से सूक्ष्म जीवाणु भी मर जाते हैं, जिससे मृत अवशेषों के अपघटन में बाधा पहुँचती है।

ध्वनि प्रदूषण का नियन्त्रण


  • ध्वनि स्रोतों में शोर शमन यन्त्रों (Noise Controlling Instruments) का प्रयोग करके (जैसे-वाहनों में साइलेंसर का प्रयोग), सड़कों के पास भारी मात्रा में वृक्षारोपण कर ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव कम किया जा सकता है।
  • तीव्र ध्वनि क्षेत्रों में ग्रीन बेल्ट (पौधों एवं वृक्षों को लगाकर) का निर्माण करके।
  • ध्वनि ग्रहण करने वाले व्यक्ति द्वारा सुरक्षा उपकरणों का प्रयोग करके।
  • ग्रीन मफलर तकनीक इसके अन्तर्गत अधिक आबादी वाले या ध्वनि प्रदूषण वाले क्षेत्र तथा सड़कों के किनारे, औद्योगिक क्षेत्रों और राजमार्गों के आस-पास के रिहायशी इलाकों में 4-6 पंक्तियों में वृक्षारोपण कर ध्वनि प्रदूषण को कम किया जाता है, क्योंकि ध्वनि को पेड़ फिल्टर करते हैं और इसे नागरिकों तक पहुँचने से रोकते हैं।
  • ध्वनि तरंगों के संचारण पथ को नियन्त्रित करके भी ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है। लाउडस्पीकरों एवं डीजे से उत्पन्न होने वाले कर्ण-भेदी शोर को सम्बन्धित लोगों को समझा-बुझाकर तथा प्रभावी निषेधात्मक कानूनों द्वारा कम किया जा सकता है।

ध्वनि प्रदूषण के नियन्त्रण हेतु सरकार के प्रयास


  • ध्वनि प्रदूषण नियन्त्रण के सन्दर्भ में भारत में अलग से अधिनियम का कोई प्रावधान नहीं है, तथापि ध्वनि प्रदूषण को वायु प्रदूषण निवारण तथा नियन्त्रण) अधिनियम, 1981 में संशोधन के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है ।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 ध्वनि प्रदूषण को रोकने / नियन्त्रण हेतु सरकार को कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है।
  • भारतीय दण्ड संहिता (आईपीएसी), (1860) धारा 268, धारा 290, 291 के अन्तर्गत ध्वनि प्रदूषकों को अपराध की श्रेणी में रखते हुए दण्ड का प्रावधान किया गया है।
  • सरकार ने ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते स्तर को नियन्त्रित करने के लिए ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियन्त्रण) नियम, 2000 को अधिनियमित किया है। शोर नियम, 2000 का नियम 5 लाउडस्पीकरों/सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली के प्रयोग को प्रतिबन्धित करता है।
  • शोर नियम, 2000 के सीधे-सीधे उल्लंघन ने सुप्रीम कोर्ट को जुलाई 2005 में ध्वनि प्रदूषण पर ऐतिहासिक फैसला देने को विवश कर दिया।
  • ध्वनि प्रदूषण के सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट का 2005 में फैसला आया। इस फैसले में अदालत ने सार्वजनिक स्थानों (आपात स्थिति को छोड़कर) पर रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच लाउडस्पीकरों के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया है।

मृदा प्रदूषण पर निबंध - Essay on soil pollution 

मृदा प्रदूषण पर निबंध - essay on soil pollution 



जब मानव या प्रकृति के द्वारा मृदा की गुणवत्ता में ह्रास होता है, तो उसे मृदा प्रदूषण कहते हैं। भूमि प्रदूषण मनुष्यों की विभिन्न क्रियाओं; जैसे- अपशिष्टों का जमाव, कृषि रसायन का उपयोग, खनन ऑपरेशन तथा नगरीकरण का परिणाम है।

मृदा प्रदूषण के कारण


  • मृदा अपरदन, मृदा में रहने वाले सूक्ष्म जीवों में कमी तथा तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव।
  • शहरीकरण द्वारा तथा उद्योगों से निकले अपशिष्ट, जिन्हें भूमि पर बहा दिया जाता है; जैसे-धातुएँ, अम्ल, क्षार, रंजक पदार्थ, धातु-ऑक्साइड, कीटनाशक आदि के द्वारा।
  • लवणयुक्त भूमिगत जल वाले क्षेत्रों में सिंचाई करने से ऊपरी मृदा अनुपजाऊ हो जाती है।
  • मृदा की विषाक्तता कृषि में कीटनाशी खरपतवारनाशी (जैसे-कार्बोफ्यूरान, फ्यूरेट, डी डी टी, ट्राइऐजोफास) के प्रयोग से भी बढ़ती है, साथ-ही-साथ मृदा में अवशिष्ट पदार्थ तथा कूड़ा-करकट मिलाने से भी मृदा प्रदूषित होती है।
  • औद्योगिक अपशिष्ट जल, नगरीय अपशिष्ट तथा मेडिकल एवं अस्पतालों के अपशिष्ट को फेंकने से भूमि प्रदूषित हो जाती है।
  • औद्योगिक ठोस अपशिष्ट तथा कीचड़, जहरीले कार्बनिक, अकार्बनिक, रासायनिक मिश्रण एवं भारी धातु के द्वारा मृदा को प्रदूषित करते हैं।
  • इसके अतिरिक्त विवृतखनन (एक प्रक्रिया जहाँ धरती की सतह का खनन कर भूमिगत जमा पदार्थ को निकाला जाता है) से ऊपरी भूमि का पूरी तरह नुकसान होता है तथा पूरा क्षेत्र जहरीले धातु एवं रसायन से संक्रमित हो जाता है।

मृदा प्रदूषण के प्रभाव 

  •  मृदा प्रदूषण प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मानव जीव-जन्तु तथा वनस्पतियों को प्रभावित करता है।
  • मृदा प्रदूषण से मिट्टी के मौलिक गुणों में ह्रास होता है। इसकी उत्पादन क्षमता कम हो जाती है, जिससे फसलों एवं वनस्पतियों का विकास कम हो जाता है।
  •  रासायनिक प्रदूषक मिट्टी में मिलकर वनस्पतियों एवं फसलों को प्रभावित करते हैं। इनका प्रभाव जीव-जन्तुओं एवं अपेक्षाकृत बड़े जन्तुओं पर अधिक पड़ता है। मनुष्य भी इन सभी से प्रभावित है।
  • कीटनाशकों के प्रयोग से मृदा के भौतिक, रासायनिक तथा जैविकीय (Biotic) गुणों का ह्रास होता है, जिससे मृदा की उर्वरता तथा उत्पादकता कम हो जाती है।
  • मृदा प्रदूषण आहार श्रृंखला के माध्यम से सबसे उच्च पोषण-स्तर (सर्वहारा वर्ग) तक अपना नकारात्मक प्रभाव डालता है। इसके अन्तर्गत मृदा में उपस्थित रासायनिक तत्त्व पौधों / फसलों के माध्यम से मानव शरीर में पहुँचकर रोग उत्पन्न करते हैं।

मृदा प्रदूषण नियन्त्रण के उपाय


  • खाद के रूप में जैविक खाद; जैसे-गोबर, पत्ती की खाद आदि का अधिक मात्रा में व रासायनिक खाद का प्रयोग कम मात्रा में किया जाए।
  • औद्योगिक अपशिष्टों को बिना उचित उपचार के व घातक रसायनों को छाने बिना भूमि पर बहाने पर प्रतिबन्ध हो। 
  • शहरी कचरे का यन्त्रों द्वारा निस्तारण करके निस्तारित कचरे को विद्युत उत्पादन व खाद उत्पादन आदि में प्रयोग किया जाए।
  • कृषि उत्पादन के लिए कम-से-क से-कम कीटनाशकों का प्रयोग किया जाए।
  • वनों की कटाई पर प्रतिबन्ध लगाकर मृदा अपरदन तथा इसके पोषक तत्त्वों को सुरक्षित रखने के लिए मृदा संरक्षण प्रणाली को अपनाया जाए।
  • भूमि उपयोग तथा फसल प्रबन्धन पर ध्यान दिया जाए तथा पॉलिथीन को मिट्टी के सम्पर्क से दूर रखा जाए। बाढ़ नियन्त्रण हेतु योजना बनाई जाए।
  • ढालू भूमि पर सीढ़ीनुमा कृषि पद्धति अपनाने पर बल देना चाहिए ।
  • भारत ने इस दिशा में राष्ट्रीय भूमि उपयोग एवं संरक्षण बोर्ड का गठन किया है, जो देश के भूमि संसाधनों के स्वास्थ्य एवं वैज्ञानिक प्रबन्धन के लिए समन्वय, नीति नियोजन व निगरानी के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करता है। 
  • फरवरी, 2015 में शुरू की गई मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का उद्देश्य मिट्टी की जाँच के द्वारा आवश्यक उर्वरकों 19 पोषक तत्त्वों की समुचित मात्रा का उपयोग करके कृषि उत्पादकता में वृद्धि करना है। यह वस्तुत: एक कार्ड है, जिसमें मिट्टी के स्वास्थ्य की वर्तमान स्थिति के विषय में सूचनाएँ संगृहीत कर सकते हैं।
  • मृदा के परीक्षण हेतु एक लघु प्रयोगशाला 'मृदा परीक्षक' का विकास किया गया है। यह मृदा परीक्षण एक डिजिटल मोबाइल मिनी लैब / मिट्टी परीक्षण किट है, जो किसानों को उनके घर पर मिट्टी परीक्षण सेवा देने के लिए विकसित की गई है।


रेडियोधर्मी प्रदूषण पर निबंध - Esaay on Radioactive pollution

रेडियोएक्टिव प्रदूषण पर निबंध - essay on radioactive pollution



रेडियोएक्टिव पदार्थों से होने वाला विकिरण रेडियोधर्मी प्रदूषण' कहलाता है। रेडियोएक्टिव पदार्थों से स्वतः विकिरण (Radiation) निकलता रहता है; जैसे- यूरेनियम, थोरियम, प्लूटोनियम आदि । रेडियोधर्मी प्रदूषण के मापन की इकाई रोण्टजन है। रेडियोधर्मी प्रदूषण के पदार्थ स्वयं में प्रदूषक एवं प्रदूषण दोनों होते हैं। भारत में रेडियोधर्मी प्रदूषण सबसे अधिक केरल में पाया जाता है।

रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण 

 यह प्रदूषण मुख्यतया परमाणु रिएक्टरों से होने वाले रिसाव, प्लूटोनियम तथा थोरियम के शुद्धीकरण, नाभिकीय प्रयोग, आण्विक ऊर्जा संयन्त्र, औषधि विज्ञान, रेडियोधर्मी पदार्थों के उत्खनन व परमाणु बमों के विस्फोट द्वारा होता है। 

मानव द्वारा विविध उद्देश्यों के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले कोबाल्ट-60, स्ट्रांशियम-90, कार्बन- 14, तथा ट्रीटियम आदि द्वारा भी नाभिकीय प्रदूषण होता है।

सूर्य की किरणों के कारण तथा पृथ्वी के गर्भ में छिपे रेडियोधर्मी पदार्थों; जैसे- रेडियम-224, यूरेनियम-238 तथा पोटैशियम-40 के कारण, जो प्रदूषण होता है, वह प्रकृति जनित प्रदूषण होता है। इसकी तीव्रता कम होने के कारण यह जीवधारियों को कोई विशेष हानि नहीं पहुँचा पाता।

रेडियोधर्मी प्रदूषण के प्रभाव


रेडियोधर्मी विकिरण का प्रभाव कई हजार वर्षों तक रहता है। सभी प्रदूषणों में रेडियोधर्मी प्रदूषण सबसे अधिक घातक होता है। रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण मनुष्यों में खतरनाक रोग; जैसे-अस्थि कैंसर, रुधिर कैंसर तथा टीबी (क्षय रोग) आदि हो जाते हैं। 

रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण जीन और गुणसूत्रों में हानिकारक उत्परिवर्तन हो जाता है। बच्चों की गर्भाशय में मृत्यु हो जाती है। रेडियोधर्मी प्रदूषण का प्रभाव धीरे-धीरे कई वर्षों में लकवे, गूँगापन, बहरापन आदि के रूप में दिखाई देता है।

वर्ष 1945 में जापान के शहर हिरोशिमा ( 6 अगस्त) तथा नागासाकी (9 अगस्त) पर अमेरिका ने परमाणु बम का बिस्फोट कर इन दोनों शहरों को नष्ट कर दिया था। आज 75 वर्षों के बाद भी वहाँ इसके हानिकारक प्रभाव को देखा जा सकता है।

इस प्रदूषण का सर्वाधिक प्रभाव यूरेनियम खानों में श्रमिक और रेडियम परत के पेण्टरों पर सबसे ज्यादा पड़ता है। • वर्ष 2011 में जापान के फुकुशिमा परमाणु संयन्त्र में रेडियोधर्मी पदार्थों के रिसाव के कारण आस-पास के इलाके को खाली करवाना पड़ा था।

रेडियोधर्मी प्रदूषण के नियन्त्रण हेतु उपाय


  • परमाणु अस्त्रों का उत्पादन व प्रयोग प्रतिबन्धित होना चाहिए।
  • रेडियोएक्टिव अपशिष्ट को तर्कसंगत एवं सही ढंग से निर्गत किया जाना चाहिए। 
  • मानव प्रयोग के उपकरणों को डियोधर्मिता से मुक्त किया जाना चाहिए ।
  • चश्मे पहनकर UV-विकिरणों से बचना चाहिए। जहाँ पर नाभिक अर्थात् नाभिकीय संयंत्र सम्बन्धी काम किए जाते हैं, वहाँ कार्य जल्दी खत्म होना चाहिए जैसे, अधिक व्यक्ति व समय कम, जिससे प्रतिव्यक्ति उद्भासन (Exposure) कम-से-कम हो ।
  • रिएक्टरों से रिसाव, रेडियोएक्टिव ईंधन तथा आइसोटोपों के परिवहन तथा उपयोग में लापरवाही बरतने आदि पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
  • आण्विक रिएक्टर की स्थापना मानव आबादी से बहुत दूर होनी चाहिए।

निष्कर्ष


पर्यावरण प्रदूषण के सन्दर्भ में उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि पर्यावरणीय प्रदूषण में प्राकृतिक कारकों के साथ-साथ मानवीय कारकों की भी भूमिका होती है। प्राकृतिक कारकों की अपनी एक स्वनिर्धारित सीमा है, जिसमें मानव हस्तक्षेप नहीं कर सकता किन्तु मानव जो पर्यावरण को सदैव उपयोगितावादी दृष्टिकोण से देखता आया है, की सोच में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। यदि व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए तो पर्यावरण को हानि पहुँचाकर हम स्वयं को भी नष्ट कर रहे हैं।

हमें गम्भीरतापूर्वक इस तथ्य पर विचार करना चाहिए कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या दे रहे हैं? संस्कृतिजीवी होने के कारण हमें ऐसे उपाय सोचने होंगे, जिसमें मानव जीवन की गुणवत्ता की रक्षा करते हुए पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जाए। 

पर्यावरण वैश्वीकरण का एक पक्ष है, मनुष्य उसका हिस्सा भी है और उपभोक्ता भी। अत: पर्यावरण का शोषण और दोहन मानव अधिकार को स्थापित करने में बाधक बन जाता है। अत: पर्यावरण संरक्षण के द्वारा हम मनुष्य के अस्तित्व और जीवन एवं गरिमा की रक्षा कर सकते हैं। पर्यावरण की गुणवत्ता पर रिचर्ड रोजर्स का कथन है कि “अगर हम पर्यावरण की गुणवत्ता सुधारना चाहते हैं तो एकमात्र रास्ता है कि हर एक व्यक्ति को इस अभियान से जोड़ा जाए।"

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