रस किसे कहते हैं, रस की परिभाषा दसों भेद व उदाहरण

SUSHIL SHARMA
0
Ras kise kahate hain: नमस्कार ! Hindee Vision में आपका स्वागत है। जैसा कि टाइटल सही स्पष्ट हो जाता है कि आज हम बात करने वाले हैं "रस" की और आज हम आपके इन सवालों के जवाब देंगे और आप जानेंगे कि 'रस किसे कहते है' , Ras ki paribhasha और Ras ke kitne bhed hote hai आदि। इस पोस्ट में हम आपको रस से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी विस्तार से प्रदान करेंगे। 

रसों की बात करें तो  9 रस माने गए हैं लेकिन कहीं-कहीं इनमें 10 या 11 रस देखने को मिलते हैं जिसमें भक्ति रस व वात्सल्य रस को भी शामिल किया जाता है। इसीलिए आज हम रस से जुड़ी संपूर्ण जानकारी आपको प्रदान करने वाले है- 

तो चलिए जानते  हैं - 

रस किसे कहते हैं - Ras kise kahate hain

Ras kise kahate hain - रस की परिभाषा भेद व उदाहरण


संस्कृत का एक श्लोक है - “रस्यते आस्वाद्यते इति रसः ।” अर्थात् जिसका आस्वादन किया जाय, सराह-सराह कर चखा जाय, वही 'रस' है । जिस तरह से स्वादिष्ट भोजन से जीभ और मन को तृप्ति मिलती है, ठीक उसी तरह मधुर काव्य का रसास्वादन करने से हृदय को आनंद मिलता है । यह आनंद अलौकिक और अकथनीय होता है। इसी साहित्यिक आनंद का नाम ‘रस' है । 

 रस की परिभाषा को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया जाता है -

रस की परिभाषा - Ras ki paribhasha in hindi

परिभाषा :- "किसी काव्य को पढ़कर या दृश्य को देखकर या उसका वर्णन सुनकर जिस आनंद व भाव की अनुभूति होती है उसे ही रस कहते हैं।"

साहित्य में रस का बड़ा ही महत्त्व माना गया है । साहित्य दर्पण के रचयिता ने कहा है—“रसात्मकं वाक्यं काव्यम्' अर्थात् रस ही काव्य की आत्मा है। जिस कविता में रस न हो वह कविता अधूरी व बेजान मानी जाती है। 

बिना रस के काव्य को कोई पढ़ना भी नही चाहता क्योंकि उसमें रोचकता ही नही आती। इसीलिए हिंदी साहित्य में रस को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

Ras ki paribhasha 


रस के प्रमुख अंग (अवयव) - Ras ke ang

रस के चार प्रमुख अंग होते है- 

1. स्थायीभाव 

काव्य के द्वारा जिस रस या आनंद का अनुभव होता है, उसके भिन्नभिन्न स्वरूप होते हैं। जिस समय आप कोई देशभक्ति या वीरता प्रधान फिल्म देखते हैं अथवा उसके डायलॉग सुनते हैं, उस समय आपके मन में एक विलक्षण उत्साह का अनुभव होता है।

जब आप किसी मजबूर और बेबस नायिका को प्रताड़ित होते हुए या विलाप करते हुए देखते या पढ़ते हैं तब आपके मन में करुणा का जन्म होता है। ऐसे ही भाव को 'स्थायीभाव' कहते हैं; क्योंकि यह भाव चित्त की अन्यान्य क्षणिक भावनाओं के बीच स्थायी रूप से वर्तमान रहता है ।

2. विभाव 

स्थायी भाव का जो कारण होता है, उसे ही 'विभाव' कहा जाता है । विभाव के दो अवांतर भेद होते हैं— आलंबन और उद्दीपन । जैसे—साँप को देखने मात्र से आपके मन में भय का संचार होता है । यहाँ आपके भय का आलंबन साँप है । अब कल्पना कीजिए कि वह स्थान सुनसान है और साँप फन फैलाकार आपके सामने है। यह दृश्य आपको और ज्यादा उत्तेजित कर देता है—यही उद्दीपन है ।

3. अनुभाव

उपर्युक्त उदाहरण में भय का अनुभव आपको किस प्रकार होता है ? आपकी देह में कँपकँपी होने लगती है, धड़कनें बढ़ जाती हैं, साँस की गति रुक-सी जाती है और आँखों के सामने उस दृश्य की भयंकरता नाचने लगती है। इस चेष्टा को ही 'अनुभाव' कहते हैं ।

4. संचारी भाव व व्यभिचारी भाव

मान लिया जाय कि डर के मारे आपकी आँखें झिप जाती हैं और थोड़ी देर के लिए आप चेतनाशून्य हो जाते हैं । यह दशा आत्म-विस्मृति की होती है। यह अधिक देर तक रहती नहीं, एकाएक बिजली की तरह आकर फिर विलीन हो जाती है। यह क्षणिक अवस्था (आत्म-विस्मृति की) केवल भय में ही नहीं शोक, प्रेम, घृणा आदि में भी आती है । ऐसी ही वृत्ति को 'संचारीभाव' अथवा ‘व्यभिचारीभाव’ कहते हैं ।

“अर्थात् विभाव, अनुभाव और संचारीभाव इन तीनों के संयोग से रस का परिपाक होता है। विभाव से भाव की उत्पत्ति होती है, अनुभाव से उसकी अभिव्यक्ति होती है और संचारीभाव से उसकी पुष्टि होती है । जब इन तीनों के द्वारा स्थायीभाव में पूर्णता आ जाती है, तब वह 'रस' कहलाता है ।

रस के प्रकार - Ras ke bhed

मुख्यतः रस को नौ भागों में बांटा गया है - 
  1. श्रृंगार रस
  2. करुण रस
  3. वीर रस
  4. हास्य रस
  5. रौद्र रस
  6. भयानक रस
  7. वीभत्स रस
  8. शांत रस
  9. अद्भुत रस



 1. श्रृंगार रस 

परिभाषा :- 'श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति या प्रेम होता है। नायक नायिका के मन मे संस्कार रूप में उपस्थित प्रेम जब रस की अवस्था को प्राप्त कर आस्वादन के योग्य हो जाता है तो वह श्रृंगार रस कहलाता है।'

उदाहरण :-  सिसु सब राम प्रेमबस जाने।
                प्रीति समेत निकेत बखाने ।।
                निज निज रुचि सब लेहिं बुलाई ।
                सहित सनेह जाऊँ दोऊ भाई ।।

 श्रृंगार रस में संयोग व वियोग रस दोनों शामिल होते हैं। इसके अलावा वात्सल्य रस व भक्ति रस  ही श्रृंगार रस के अंतर्गत ही आते हैं। श्रृंगार रस को रसों का राजा या 'रसराज' भी कहा जाता है। 

2. करुण रस

परिभाषा :-  "किसी प्रिय व्यक्ति या प्रिय वस्तु के बिछड़ जाने या , अनिष्ट होने की शंका से या विनाश से उत्पन्न होने वाला दुःख की स्थिति को करुण रस कहते हैं।"

जब विभाव, अनुभाव व संचारी भाव के प्राप्त होने पर 'शोक' नामक स्थाई भाव करुण रस के कारण उत्पन्न होता है।


उदाहरण -   

जिस आंगन में पुत्र शोक से बिलख रही हो माता
वहां पहुँच कर स्वाद जीभ का तुमको कैसे भाता। 
पति के चिर वियोग में व्याकुल युवती विधवा रोती
बड़े चाव से पंगत खाते तुम्हे पीर नही होती।

3. वीर रस 

परिभाषा :- "वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है। किसी काव्य या रचना को पढ़कर वीरता और उत्साह जैसे स्थाई भाव की उत्पत्ति हो उसे ही वीर रस कहते हैं।  "

उदाहरण :-   
                   रण में हाहाकार मचो तब,
                  राणा की निकली तलवार
                  मौत बरस रही रणभूमि में,
                  राणा जले हृदय अंगार।


4. हास्य रस

परिभाषा :-  "किसी की वेशभूषा, क्रिया कलाप, आकृति और चेष्टा को देखकर मन में जो हर्ष और विनोद का भाव जागता है उसे ही हास कहते हैं। जब यही हास हमें विभाव, अनुभाव व संचारी भाव के माध्यम से हमें प्राप्त होता है उसे ही हास्य रस कहते हैं।" 

जैसे - यार तू दाढ़ी बढ़ा ले, साल आया है नया । 
        नाई के पैसे बचा ले, साल आया है नया ।।
        तेल कंघा पाउडर के खर्च कम हो जाएँगे।
    आज ही सर को घुटा ले, साल आया है नया।।

5. रौद्र रस

परिभाषा :- "रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है। जिस काव्य को पढ़कर क्रोध नामक भाव की अनुभूति होती है उसे रौद्र रस कहते हैं। "

उदाहरण -  

श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे
सब शील अपना भूलकर करतल युगल मलने लगे। 

6.  भयानक रस

परिभाषा :- भयानक रस का स्थाई भाव 'भय' होता है। जहाँ भयानक दृश्य अथवा घटना को देखकर मन मे भय का भाव जागृत होता है वहां पर 'भयानक रस' होता है।

उदाहरण - 

एक ओर अजगरहिं लखि, एक ओर मृगराय
विकल बटोही बीच ही, परयो मूर्छा खाय ।

7.  वीभत्स रस

परिभाषा :- " वीभत्स रस का स्थायी भाव जुगुप्सा (घृणा) है। जुगुप्सा नामक स्थाई भाव अनुभाव व संचारी भाव के संयोग से वीभत्स रस की उत्पत्ति होती है।"

उदाहरण - 

गिरि पर डगरा - डगरा कर, खोपड़ियाँ फोर रहे थे ।
मलमूत्र - रुधिर चीनी के, शरबत सम घोर रहे थे ।
भोजन में श्वान लगे थे, मुरदे थे भू पर लेटे।
खा मांस, चाट लेते थे, चटनी सम बहते नेटे ।
लाशों के फाड़ उदर को, खाते-खाते लड़ जाते ।
देकर, चर चर कर नसें चबाते ।।


8.  अद्भुत रस 

परिभाषा :- " अद्भुत रस का स्थाई भाव आश्चर्य होता है जहां पर किसी वस्तु व्यक्ति अथवा दृश्य को देखकर आश्चर्य नामक स्थाई भाव अनुभव व संचारी भाव की उत्पत्ति हो वहां पर अद्भुत रस होता है। 

उदाहरण -  

दौड़ा था अपना घोड़ा अरि जो आगे बढ़ जाता था,
उछल मौत से पहले उसके सिर पर वह चढ़ जाता था।
लड़ते-लड़ते रख देता था टॉप कूदकर पैरों पर,
जाता था खड़ा कभी अपने चंचल दो पैरों पर।

9.  शांत रस

परिभाषा :- वह काव्य रचना जिसको पढ़ने जस सुनने के बाद मन में निर्वेद या वैराग्य नमक भाव की अनुभूति होती है वह पर शांत रस होता है।

उदाहरण -  मन रे तन कागद का पुतला
               लागी बूँद बिनसि जाई छिन में
               गरब करै क्या इतना।


आवश्यक जानकारी  :- इनके अलावा कई विद्वान 'भक्ति रस' व 'वात्सल्य रस' को अलग रस मानते हैं किंतु ऐसा नहीं है भक्ति रस और वात्सल्य रस भी श्रृंगार रस के अंतर्गत ही आते हैं। श्रृंगार का स्थायी भाव प्रेम होता है फिर वह चाहे नायक -नायिका का हो, पति पत्नी का हो, माता शिशु का हो या भक्त और भगवान का। श्रृंगार रस का क्षेत्र बहुत ही व्यापक होता है इसी कारण इसे रसराज भी कहा जाता है।



उपसंहार

हां तो दोस्तों आशा करते हैं कि आपको हमारी आज की यह पोस्ट "Ras kise kahate hain" पसंद आई होगी। आज की इस पोस्ट में हमने जाना कि ' रस की परिभाषा'  क्या होती है और  रस के कितने भेद होते हैं ? । दोस्तों हमने इस पोस्ट में यही प्रयास किया है की आपको इससे जुड़ी सभी जानकारी सरल भाषा मे बता सकें। फिर भी अगर आपके मन मे कोई सवाल हो तो हमसे कमेंट में पूछ सकते हैं। 

अगर आपको हमारी पोस्ट पसंद आती है तो इसे अपने दोस्तों और  सोशल मीडिया पर शेयर करें और शिक्षा जानकारी से जुड़ी ऐसी ही पोस्ट पढ़ने के लिए हमे   Facebook Instagraam और Twitter पर follow करें। 

धन्यवाद !

आपका दिन शुभ हो !


Post a Comment

0Comments

Post a Comment (0)